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________________ हृदय को पिघला दिया। पूर्व में मुनि ने गुरु का घोर अपमान किया था जिससे एक स्त्री द्वारा उनका पतन हुआ। कुलवालक मुनि अब एक भी पल वेश्या के बिना नहीं रह सकते थे। मागधिका, मुनि को कोणिक के पास ले गई। कोणिक ने उनका आदर-सत्कार करके वैशाली नगरी को प्राप्त करने का उपाय पूछा। उपाय प्राप्त करने के लिए कुलवालक मुनि ने निमित्तज्ञ का स्वांग रचकर वैशाली नगरी में प्रवेश किया। नगरी में घूमते-घूमते उन्होंने नगर के आधार स्तम्भ समान मुनि सुव्रत स्वामी का स्तूप देखा। जिसका प्रतिष्ठा-लग्न उत्तम होने के कारण नगर अखंड अटूट. रहता था। इधर अनेक दिनों से नगर में कैद त्रस्त नगरजनों ने निमित्तज्ञ (कुलवालक) से पूछा-"ज्योतिषी महाराज ! इस नगर के द्वार कब खलेंगे? इस कैद से हम लोग परेशान हो गये हैं। क्या इससे मक्त होने का कोई उपाय है ?" जैसा कुलवालक चाहते थे, वैसा ही हुआ। उन्होंने कहा-“अरे नगरजनों ! जब तक यह पापी स्तूप यहाँ है, तब तक मुक्ति असंभव है। यदि इस स्तूप को उखाड़ दिया जाये तो नगर को घेरा हुआ सैन्य वापस हट जायेगा।" धूर्त कुलवालक के ऐसे वचन सुनकर नगरजनों ने स्तूप उखाड़ना आरम्भ किया। ज्यों-ज्यों स्तूप उखड़ता गया, त्यों-त्यों लोगों में विश्वास उत्पन्न करने के लिए, कुलवालक के संकेतानुसार कोणिक राजा धीरे-धीरे अपना सैन्य दूर हटाता गया। लोगों को कुलवालक मुनि की बात पर इतना अधिक विश्वास हो गया कि उन्होंने मुनि सुव्रत स्वामी का मजबूत स्तूप को जड़ से उखाड़ फेंक दिया। स्तूप के उखड़ते ही कुणिक ने सैन्य सहित आक्रमक रूप से नगर में प्रवेश किया और वैशाली पर कब्जा कर लिया। बाजी हारते हुए देखकर राजा चेटक ने अनशन पूर्वक नमस्कार महामन्त्र को स्मरण करते हुए, गले में लोहे की पूतली बाँधकर कुए में कूद पड़े। उसी समय धरणेन्द्र का आसन कंपायमान हुआ और वहाँ आकर धरणेन्द्र ने चेटक ★४४★ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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