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________________ इस प्रकार नगरजनों के मुख से प्रतिदिन हल्ल-विहल्ल की प्रशंसा सुनकर कोणिक की रानी पद्मावती ने सोचा"जिस प्रकार बिना घी का रुक्ष भोजन व्यर्थ है, उसी प्रकार सेचनक हाथी और दिव्य हार रहित से विशाल साम्राज्य भी फीका है।" ___ हल्ल-विहल्ल और उनके परिवार की प्रशंसा रानी पद्मावती सहन न कर सकी। उसने मन ही मन एक निश्चय किया-“मेरे पति कोणिक द्वारा ये चीजें बलपूर्वक प्राप्त करूंगी।" उसने एकान्त में कोणिक को अपनी इच्छा बतायी। कोणिक ने कहा-"भाईयों की सम्पत्ति यदि मैं बलपूर्वक प्राप्त कर लू, तो मैं नीच कहलाया जाऊँगा। अतः ऐसा विचार त्याग दो।" पर स्त्री हठ तो स्त्री हठ ही होती है। पद्मावती नहीं मानी। आखिर पत्नी-स्नेह के कारण कोणिक को झुकना पड़ा। कुलीन परिवार के पुरुष भी स्त्री के मोह में फँसकर अनर्थ कर देते हैं। जिस प्रकार पागल आदमी बीच बाजार में अपने बस्त्र उतारकर बेशर्म-नग्न हो जाता है, उसी प्रकार कोणिक ने भी न्याय-नीति-मर्यादा और बंधु-प्रेम को ताक पर रखकर हल्ल-विहल्ल से, बिना अधिकार के दिव्य हार आदि चारों वस्तुओं की माँग की और अन्त में क्रोधित होकर यहाँ तक कह दिया कि यदि तुम लोग ये वस्तुयें नहीं दोगे तो मैं बलपूर्वक ले लूंगा। हल्ल-विहल्ल ने उत्तर दिया-“स्वयं पिता जी ने ही हमें ये हार आदि दिया है, अतः इन पर हमारा अधिकार है। हाँ यदि तुम राज्य में से हिस्सा देने को तैयार हो तो हम हार आदि देने को तैयार हैं।" पर कोणिक ने ये बात स्वीकार न की। अन्त में हल्ल-विहल्ल ने सोचा-“अब यहां रहना हमारे लिए उचित नहीं है। मुसीबत सिर पर है।" यह सोचकर दोनों सपरिवार रातोंरात चंपा नगरी से निकलकर वैशाली के महाराजा चेटक मातामह (माता के पिता) के पास गये और उनको अपनी वास्तविक्ता बतायी। चेटक ने उनका स्वागत-सम्मान किया और रहने के लिए सुन्दर व्यवस्था कर दी। हार आदि के कारण बंधुओं से चिढ़े हुए चिंतित कोणिक ने दूत द्वारा महाराजा (मातामह) चेटक को सन्देश भेजा-"हस्तिरत्न सहित मेरे दोनों भाईयों को वापस करो और यदि वे आने के लिए तैयार न हो तो हाथी, कुंडल आदि चीजें भेज दो। जिस प्रकार हल्ल-विहल्ल आपके दोहिन्न है, उसी प्रकार मैं भी आपका दोहिन्न हूँ। आपको सब पर समान स्नेह-भाव रखना चाहिए।" चेटक राजा ने उसी दूत द्वारा कोणिक को सन्देश भेजा कि-“स्वयं पिता द्वारा दी गई सम्पत्ति भाईयों से बलपूर्वक छीन लेना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। ये दोनों मेरी शरण में है। इनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। दोहिनो के रूप में तुम सब मेरे लिए समान हो। किन्तु न्याय इन दोनों के पक्ष में है, और फिर शरणागत होने के कारण इनकी रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य है। फिर भी यदि तम राज्य में से हिस्सा देने को सहमत हो तो हाथी, दिव्य-हार आदि सब तुम्हें दिलवा दूंगा।" दूत ने जाकर कोणिक को राजा चेटक का सन्देश कह सुनाया। यह सुनकर पत्नी के मोह में अन्ध कोणिक आपा खो बैठा और क्रोधान्ध होकर उसने तत्काल युद्ध की तैयारी करवा दी। तैंतीस हजार हाथी, तैंतीस हजार रथ और तैंतीस करोड़ सैनिकों के साथ कोणिक ने युद्ध के लिए महाराजा चेटक की सीमा की और प्रयाण किया। काल आदि दस भाईयों को भी उसने साथ लिया। मुकुट धारी अठारह राजा, सत्तावन हजार रथ, सत्तावन हजार हाथी तथा एक करोड़ सैनिकों के साथ राजा चेटक भी युद्ध के लिए तैयार हो गये। दोनों सेनायें आमने-सामने आ गई और युद्ध के लिए विभिन्न प्रकार के व्यूह रचे गये। कोणिक की सेना में पहले दिन काल को सेनापति नियुक्त किया गया। तुरही के बजते ही युद्ध आरम्भ हो गया। नारियल की तरह युवा सैनिकों के सिर फूटने लगे। राजा चेटक के पास एक दिव्य बाण था। जिस लक्ष्य पर छोड़ा जाये उसे मारकर ही रहे। चेटक का प्रण था कि एक दिन में केवल एक बाण छोड़ा जाये। ★४०★ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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