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________________ • रासायनिक खाद और एलोपेथी दवाईयों को त्यागकर देशी खाद एवं आयुर्वेद को अपनाये। • मिस्त्री, बढ़ई, लुहार, तेली, मोची कुम्हार, बनकर, चमार आदि का वंश परम्परागत धन्धा, अनुभव ज्ञान आदि से ग्राम्य हस्तउद्योग, कला एवं स्थापत्य को पुनः स्थापित करे। • नौकरीपरक, रोटीपरक और डिग्री परक पाश्चात्य भौतिक शिक्षा को समाप्त कर गुरुकुल प्रथा को पुनः स्थापित करे। अंग्रेजों द्वारा स्थापित न्याय-तन्त्र (या अन्याय तन्त्र) को समाप्त कर आदर्श न्याय-तन्त्र को स्थापित करें। महाजन व्यवस्था का योग्य स्वागत करे। • जनता और बच्चों के मानस पर कुत्सित संस्कार डालने वाले भौंडे चलचित्रों, दृश्यों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों और समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगाये। मातृ-भाषा एवं संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन दें। • अंग्रेजों की कूटनीति से स्थापित विभिन्न पार्टियों, कृत्रिम अधार्मिक संविधान, पाश्चात्य हिंसक और शोषक अर्थ व्यवस्था का त्याग करे। • वैर-ईर्ष्या, षड्यन्त्रों, मतभेद, झूठ, प्रपंच, भ्रष्टाचार, बेईमानी, ठगी, अरबों रुपयों की बरबादी, नीच-दुष्ट तत्त्वों को जन्म देने वाली चुनाव-प्रथा को समाप्त करे। • विदेशी मुद्रा के लालच को दूर करे। • स्त्रियों की नौकरी पर प्रतिबन्ध, साथ ही संस्कृति की रक्षा करने वाली, आदर्श गृहिणी, आदर्श माता एवं आदर्श पत्नी बनी रहे। और संयुक्त परिवार की भावनाओं की रक्षा करने के अलावा बच्चों में सुसंस्कार सिंचित करने का कर्तव्य निभाने लायक वातावरण बनाये। • धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों से युक्त अहिंसा संस्कृति की नींव पर रचित संविधान को पुनः जीवित करे। लोकतन्त्र नहीं वरन् जनता और प्राणियों के हितैषी सन्त-शासन की पुनः स्थापना करे। ऐसे ही किसी चाणक्य की हमें आवश्यकता है जिसकी नीतियाँ देश का चहुंमुखी विकास कर सके, अन्यथा कूटनीतिक चाणक्यों की हमारे यहाँ कमी नहीं हैं। जिनकी भ्रष्ट बुद्धि से देश में गो-शाालााओं के स्थान पर बूचड़-खानों और कारखानों की भरमार हो गई है। आखिर, आत्मा को अमर करने वाला अमृत है केवल "धर्म" ! चाणक्य ने भी अन्त में जैन दीक्षा ग्रहण करके आत्म-कल्याण का मार्ग पकड़ लिया। ★३८★ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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