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________________ और सैनिक के बीच जो वार्तालाप हो रहा था, तब तुम क्या सोच रहे थे ? चन्द्रगुप्त ने कहा-"पूज्यवर ! तब मैं यही सोच रहा था कि आप जो भी करेंगे, अच्छा ही करेंगे। इस विषय में मुझे कुछ सोचना ही नहीं चाहिए।" यह सुनकर चाणक्य सन्तुष्ट हुआ और सोचने लगा कि भविष्य में चन्द्रगुप्त हमेशा मेरे वश में रहेगा। - कुछ दूर तक यात्रा करने के बाद चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से कहा-मुझे बहुत भूख लगी है। चन्द्रगुप्त को वहा बिठाकर चाणक्य पास के गाँव में भोजन लेने गया। तभी दूर से उसने एक व्यक्ति को आते हुए देखा। चाणक्य न उससे पूछा-"इस गाँव में भिक्षा मिलेगी ?" व्यक्ति ने कहा-हाँ, मैं भी अभी दही और भात आदि का भोजन करके आ रहा हूँ।" चाणक्य ने सोचा-गाँव में यदि मैं भिक्षा लेने जाऊँगा तो नन्द के क्रूर सैनिक चन्द्रगुप्त को मार देंगे और भविष्य में राज्य प्राप्त करने का मेरा स्वप्न अधूरा रह जायेगा। अतः इस स्थिति से निपटना अत्यन्त आवश्यक है। यह सोचकर उसने उस व्यक्ति के पेट में छुरा भोंक दिया और उसकी आंतों में से ताजा खाया हुआ दहीभात का भोजन निकालकर चन्द्रगुप्त को खिलाया और स्वयं भी खाया। सत्य ही है कि नीच लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों से विश्वासघात करने से बाज नहीं आते। चाणक्य को तो असहाय होकर कुछ बुरे काम करने पड़े होगें। जबकि आधुनिक चाणक्यों की ती बात ही निराली है। अरबो की सम्पत्ति स्वीट्जरलेन्ड के बैंकों में जमा करने के बाद भी अपनी सत्ता का दुरुपयोग करके देश को खोखला बनाकर हंसते हुए मूल्यों की बात करने में तनिक भी लज्जित नहीं होते।" राजनीतिकों ने अपने स्वयं की पूर्ति के लिए देश को पतन के गर्त में धकेल दिया है। जनता को बिल्कुल खोखला कर दिया है। कथित लोकतन्त्र में लोगों का सूर ही नहीं है। और यदि कोई आवाज उठाये तो नक्कार खाने की तूती के समान होती है। वास्तव में आजकल लोकतन्त्र का अर्थ ही अफसरतन्त्र, गुंडातन्त्र, पहुँचतन्त्र, अंधेरतन्त्र आदि है। राज्यतन्त्र में महाजन की आवाज में वजन होता था। महाजन अर्थात् लोगों की आवाज, जनता की आवाज, महाजन जनता की समस्याओं को सत्ताधीश तक पहुँचकर उनका समुचित हल भी करता था। जब महाजन युक्त राज्यतन्त्र का निर्माण होगा तभी सफेद पोश ठगों का अन्त होगा और तभी भारत की संस्कृति में सुधार होगा। ★★ C जगत के औल प्रोबलेम्स सोल्व करने की ताकत मैत्री व करुणा (भावना) में है। -प. पू. आ. वि. कलापूर्ण सू. म. ★३२ ★ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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