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________________ चाणक्य भी घूमता-घूमता बालक (चन्द्रगुप्त) को देखने उसी गाँव में, उसी स्थान पर जा पहुंचा, जहाँ बालकों के साथ चन्द्रगुप्त खेल रहा था। इस बार चन्द्रगुप्त स्वयं राजा बनकर बच्चों को कुछ दे रहा था। चाणक्य ने भी उस बाल-राजा से याचना करते हुए कहा-“महाराज जी ! मुझे भी कुछ दीजिये।" यह सुनकर चन्द्रगुप्त ने कहा-"भूदेव ! आपको गाय भेंट करता हूँ।" चाणक्य ने कहा गायों से तो मैं डरता हूँ। चन्द्रगुप्त ने कहा-“यह पृथ्वी तो वीरभोग्या है, (वीरभोग्या भूरियम्)।" तब चाणक्य ने अन्य बालकों से पूछा-"ये बालक कौन है ?" बालकों ने उत्तर दिया कि जब ये वालक गर्भावस्था में था, तब उसकी माता का प्रण पूरा करवाने के उपलक्ष्य में किसी सन्यासी को दिया गया था। यह प्रकष्ट बद्धिमान बालक मेरा अपना ही हैं. यह सोचकर चाणक्य ने चन्द्रगप्त से कहा-"वत्स ! चलो. मैं तम्हें राज्य दिलाऊँगा। मैं वही सन्यासी हूँ जिसको तुम दिये गये थे।" राज्येच्छु बालक चन्द्रगुप्त भी उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया। चाणक्य ने उसको साथ लेकर जल्दी से नगर छोड़ दिया। तत्पश्चात् कुछ धन एकत्रित करके उन्होंने एक छोटी-सी सेना तैयार की। और अपना प्रण पूरा करने के लिये पाटलीपुत्र को चारों ओर से घेर लिया। परन्तु नन्द की विशाल सेना के समक्ष वे टिक न सके। पराजित होकर भाग निकले। चन्द्रगुप्त को पकड़ने के लिए नन्द के सैनिकों ने उसका पीछा किया। उन सैनिकों में से एक सैनिक तीव्र गति से दौड़ते हुए उन दोनों के बहुत निकट आ पहुँचा। सैनिक को देख चाणक्य ने बाल चन्द्रगुप्त को निकट स्थित एक तालाब में छिपा दिया और स्वयं धोबी बनकर कपड़े धोने का ढोंग करने लगा। निकट आकर सैनिक ने चाणक्य से पूछा-“अरे धोबी ! यहाँ से भागते हुए चन्द्रगुप्त को तुमने देखा है क्या ?" चाणक्य ने कहा-"हाँ" इस तालाब में प्रवेश कर वो छिप गया है।" वस्त्र, शस्त्र, बखतर आदि उतारकर केवल एक लंगोटी पहने हुए सैनिक ने जैसे ही चन्द्रगुप्त को ढूंढने के लिए तालाब में छलांग लगाई, तभी उसी की तलवार से चाणक्य ने उसका सिर उड़ा दिया। तत्पश्चात् बाल चन्द्रगुप्त को बुलाकर दोनों घोड़े पर सवार होकर आगे रवाना हुए। रास्ते में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त से पूछा-कि तुम्हारे विषय में मेरे maraxeSRO ★३१★ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002740
Book TitleAnant Akash me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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