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सपरिवार वापस लौटे।
देख लो, जैसे जंगलके शुष्क वृक्ष ही । अतिकृश ।
कालीमेंश काया खोजनेसे भी कैसे मिले... ? जैसा । एकदा विहार करते-करते प्रभुवीर अपनी (राजगृही) प्रभुवीरने वर्णन किया ऐसा ही अणगारका रूप देखकर राजा । नगरी में पधारे... आडंबर सहित राजा श्रेणिक प्रभुको वंदन इनके चरणोंमें झुक गया । अमावस्याकी रात्रि जैसी काली । करने आये। प्रभुकी भाव-सहित भक्ति की, और श्रेणिकने कायामें भी इनके मुख पर विरागका पूर्णचंद्र सोलह कलासे । सवाल किया... प्रभो ! आपकी चौदह हजार मुनियोंकी खिल उठा था। इनके ललाट पर ब्रह्म-तेज झलकता। पर्षदामें दिन-प्रतिदिन चढ़ते परिणामवाले उत्कृष्टा अणगार था। इनकी कायामें तपकी कांति झलक दे रही थी। राजा | कौन ? प्रभुने मेघगंभीर ध्वनिमें उत्तर दिया... | काकंदी तो इस विराटके पास वामन बन गया । जातको अति तुच्छ । नगरीके भद्रा माताके लाड़ले सुकुमाल धन्यकुमारने भरे गिनने लगा... अणगारकी बार-बार स्तुति करते और वंदन । यौवनमें भारी-वैराग्यसे मेरे पास चारित्र ग्रहण किया... अभी करते राजा श्रेणिक स्वस्थान लौटा । धन्ना अणगारने भी । तो इसको थोड़े मास ही हुए हैं । परंतु श्रेणिक ! चौदह प्रभुके पास आकर वैभारगिरि पर अनशन स्वीकारनेकी । हजार महात्माओंकी साधनाको भी अतिक्रांत कर जाय ऐसी अनुमति माँगी । प्रभुने सहर्ष अनुमति दी... और संजू ! इनकी बाह्य और आंतरिक साधना है ।
बस, इसी स्थान पर एक मासके उपवास करके अनशन ।
किया... मर्त्यलोकका यह चमकता सितारा नवमासक | संयम ग्रहण करनेके पश्चात् आज दिन तक विशुद्ध चारित्र पालकर संसार के सर्वोत्कृष्ट सुखके धामस्वरूप । -सुविशुद्ध परिणाम दिन-दुगुना रात चो-गुणा - बढ़ते ही सर्वार्थसिद्धिमें देव बने । आज भी यह परम विरागी दशाम । रहा है। छट्ठके पारणे आयंबिल और (जो) आहारके ऊपर झीलते दैवी सुखोंको अनुभव कर रहे हैं। मक्खी भी न बैठे ऐसा तद्दन निरस शुष्क आहार मात्र देहको टिकानेके लिए ही ले रहे हैं। ऐसे भीष्मतपसे इनका मस्तक भोगनिष्ठमेंसे ब्रह्मनिष्ठ बने अणगारकी रोमांचक । धूपमें सुखाये तुंबड़े जैसा और आकाशके तारेकी तरह कहानी सुनकर संजूका हृदय वशमें न रहा... उसकी आँख । तगतगती इनकी दोनों आँखे भीतर जा चुकी है। जिसमें छलक आईं... उसको स्वाभाविक ध्यान लग गया। आधी थूकका अंश भी दिखने न मिले ऐसी शुष्क पर्ण जैसी इनकी घड़ी तक धन्ना-अणगारकी ब्रह्मनिष्ठामें यत्किचित् लीन । जीभ बनी है। इनकी दश-अंगुलियाँ सूखी मूंगकी शींग जैसी बने । राजूने उसको हिलाया... अनशन भूमिकी उस पवित्र । हो गई है। इनकी कोणी की दो हड्डियाँ बिल्कुल बाहर रेतको मस्तक पर लगाया... भावविभोर हृदयसे दोनोंने नीचे । निकल आयी है...
उतरने के लिए पाँव उठाया... संध्या समयका अभी ।
थोड़ासा उजाला था। नवमासके अंदर तो धन्यमुनिने कैसा । गोचरीके लिए जाते है तो हड्डियोंकी खड़खड़ आवाज आत्मकल्याण साध लिया वह तत्त्वकी... विचारणामें..... आ रही है...
कतना पथ कट गया इसका भी ख्याल न रहा । इन्होंने ।
वैभारगिरिकी तलेटी पर पाँव रखा... वातावरणमें नीरव । यह तपोनिष्ठ अणगारकी ऐसी साधना सुनकर बारों शांति थी। आज कौमुदी मेलेका आखरी दिन था... नगरकी । पर्षदामें सन्नाटा छा गया । गौतमस्वामी आदि मुनिपुंगव जनता नगरके सामनेके छेडेसे नगरमें लौट रही थी। भी विस्मयमें डूब गये... इनके मुखमेंसे गुणानुरागके शब्द निकल आये... और श्रेणिक...? श्रेणिक तो पकड़में ही न
झटपट चलते दोनों मित्र नगर-द्वार के पास आ। रह सके... वह तो अपनी छोटीसी सवारी लेकर पहुँचे... पहुँचे... यहाँसे इनको टाँगा-गाड़ी मिल गई... दोनो टाँगे । जहाँ प्रभुने स्थल-सूचित किया था उस वनमें... ध्यानस्थ बैठे । उस शालिभद्रकी हवेलीके पुन: दर्शन हुए। घोडागाड़ी । धन्ना अणगारको वंदन के लिए... परंतु यह क्या ? अणगार मध्यम गतिसे जा रही थी। घर-घरमें दीप प्रगट चुके थे। तो कहीं दिखते ही नहीं... ! श्रेणिकने सेवकोंको जंगलमें कहीं टाबर मोहल्लेमें खेल रहे थे... कहीं बछड़े भांभरते । चारों ओर दौड़ाया। खुद शोध करने लगे... परंतु असफल... थे। शंखोंकी आवाज आ रही थी। कहीं भजन-कीर्तन ।
चालू थे... कोई घरके आँगनमें शय्या पर सो रहे थे... वो | आखिर सुक्ष्म निरीक्षणसे मिले सही...
मेलेका श्रम दूर कर रहे थे.... Jain Education International For Private & Personal Use Only
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