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________________ राजूने कहा - जिसके ऊपर छोड दी जाय वह जलकर खत्म हो जाय ऐसी एक विद्या... लब्धि...... शक्ति......! संजू! स्वयंने छोड़ी हुई आगसे ही गोशाला का शरीर जलने लगा और साथमें पश्चातापकी अग्निसे इसकी आत्मा भी जलने लगी। वह अपने इस महापापके लिए खूब पछताने लगा। संजूने पूछा - इसने प्रभु पर तेजोलेश्या क्यों छोड़ी? राजूने कहा - सुन, प्रभु केवली बनकर बिचरते - बिचरते श्रावस्ति नगरीमें पधारे थे तबकी यह बात है। अष्टांग निमित्त और तेजोलेश्याकी विद्यासे गर्विष्ठ बना गोशाला स्वयंको भगवानके (तीर्थकर) रूपमें जाहिर करने लगा। तब नगरमें दो भगवंत पधारे हैं... ऐसी चर्चा होने लगी। गौतमस्वामीजीने साश्चर्य भगवंतको सवाल किया कि यह दूसरे भगवंत कौन हैं ? तब प्रभुने कहा - वह दसरा कोई नहीं, मेरा ही शिष्य बना मंखलीपुत्र - गोशाला है। इसने अपने भक्तोंको कहा... भगवान मैं नहीं..... महावीर सच्चे भगवान हैं इनको मैंने तूं.............की भाषामें गालीगालौज की है। मेरे मृत्यु के बाद अब तुम मेरे शवको रस्सीसे बाँधकर मृत कुत्तेकी तरह पूरी नगरीमें धुमाना (घसीटना) और मेरे ऊपर थूकना और पुकार करना कि..यह गोशाला जिन नहीं है यह तो मंखलीपत्र गोशाला ही है। प्रभु महावीरका.महाद्रोह करनेवाला है..... इस प्रकार उसने खुद स्वीकार किया है। संजू ! इस तरह पश्चाताप करता हुआ गोशाला सातवें दिन मृत्यु पाकर बारहवें देवलोकमें गया.....! इस बातकी चर्चा गोशालाके कान पर आयी। वह तो आग-बबूला हो गया। क्रोधान्ध बनकर वह प्रभुके पास आया। | प्रभुने सभीको सावधान कर दिया। सबको इधर-उधर हो जानेके लिए कह दिया। गोशालाने आकर प्रभुको गाली-गलौंच द्वारा जैसेतैसे बोलने लगा। तू जुठा है... तू जिन नहीं.. मैं जिन हूँ...। वह गोशाला तो कबका मर चुका.... उस गोशालेके शरीरमें प्रविष्ट मैं | जिन हुँ। इसीलिए तू तेरी जीभ बंद कर...। संजू बोला - लेकिन इसने भगवानका द्रोह किया.. इनका क्या..? भगवंत बोले...हे गोशालक ! तू ऐसे झूठ बोलकर अपनी जातको क्यूं बना रहा है? तूं खुद जो गोशाला था, वो ही तू आज है। आगमें जैसे घी डाले...इसी तरह गोशालाने प्रभुकी और जिन्दी आग (तेजोलेश्या) छोड दी। राजूने कहा- इसका फल इसको जरूर मिलेगा। और अनंतकाल तक कु-योनिमें भटकता रहेगा । इसकी मौत (प्राय:करके) हर दफे आगसे या शस्त्रोंसे ही होगी। अनंतकाल पश्चात् फिरसे जब वह मनुष्य बनकर केवलज्ञानी बनेंगे..तब सबसे प्रथम देशनामें वह "कदापि गुरुद्रोह करना नहीं...... जिसके कारण मैंने अनंतकाल तक असह्य दुःख-वेदनाएँ सहन की हैं....." इस तरह श्रोताजनोंके सामने अपनी कहानी सुनायेंगे। प्रभु के अतिशयसे वह आग प्रभु को तीन प्रदक्षिणा देकर गोशालेके शरीरमें प्रविष्ट हुई। प्रभुको तेजोलेश्याकी ज्वालासे ६ (छह) मास तक शौच में खून बहा जो आखिर रेवती श्राविकाने बहराये कोलापाकसे शांत हुआ। संजू ! शायद, देव-गुरू-धर्मकी या ज्ञान-दर्शनचारित्रकी विशिष्ट आराधना न हो सके तो भी विराधना, आशातना, निंदा, तो स्वप्नमें भी नहीं करनी चाहिए। वरना यह चिकना (भारी) कर्म उदयमें आनेके साथ ही आँखमें से खूनके आँसू बहाते हुए भी छुटकारा पाना असंभव हो जायेगा। संजू बोला - गोशालाका क्या हुआ? राजूने कहा वही तो कह रहा है... संजू ! गोशालेके शरीरमें प्रविष्ट आग सात दिन बाद गोशालेका करुण मृत्यु लेकर ही रही। संजू बोला - वह कौनसी नरकमें गया? गुरूहीलक-गोशालाकी कहानी सुनते - सुनते संजूकी आँखोमें तम्मर आने लगा । वह अपना मस्तक खुजलाने लगा। पापके पश्चातापसे गोशालाको स्वर्गकी भेंट... पापकी खुशीसे श्रेणिकको नरककी भेंट..... तीर्थंकरकी आशातनासे गोशालाका अनंत भवभ्रमण..... तीर्थंकरकी आराधनासे श्रेणिकको तीर्थकर पद..... राजू बोला - नहीं, वह बारवें देवलोकमें गया। संजू बोला! ओह.....! प्रभुका परम भक्त श्रेणिक नरकमें और गोशाला स्वर्गमें... यह किस घरका न्याय ? वाह.. ! जिनशासनका न्यायासन कितना स्वच्छ.. न्यायी........! 23 Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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