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________________ "INNI KARO मा UUUIUM . गुरुद्रोही - गोशालकके जन्म-स्थलपर... जू, संजूको एक गलीमें ले गया...! जहाँ पुरानी गौशाला थी ! दोनों गौशालाके द्वारके पास आ पहुँचे। राजूने संजूको । कहा मंखलीपुत्र गोशालेका यह जन्मस्थल है। बहुल नामके ब्राह्मण की यह गोशालामें जन्म होने से इनका नाम गोशाला रखा गया। एक बार प्रभु वीरको एक श्रेष्ठि सुंदर आहार वहोरा रहे थे यह देखकर गोशालेको हुआ..इनका शिष्य बनने में मजा है... अच्छा खाना-पीना मिलेगा। इसने प्रभुको विनंती की। पर भगवंतने दीक्षा देनेकी अनुमति नहीं देनेसे | आखिर गोशालाने स्वयं ही वेश धारण कर लिया। और खुदको प्रभु महावीरके शिष्यके रूपमें पहेचान देने लगा। अपने अनेकविध अपलक्षणोंसे प्रभुवीरको और स्वयंको भी जहाँ जाता वहाँ संकट खड़ा कर देता। संजू....! गोशाला गुरूद्रोही इसीलिए कि प्रभुके पाससे उसने तेजोलेश्या छोड़ने की विद्या सीखी। और भविष्यमें प्रभुके ऊपर ही उसने तेजोलेश्या छोड़ी...। संजूने पूछा तेजोलेश्या याने क्या ? कीमत n ation International For Private & Feldal Use Only www.jaineltorarya
SR No.002739
Book TitleEk Safar Rajdhani ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmadarshanvijay
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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