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Here is the English translation, preserving the Jain terms:
The Bhutartha minister again said that the skeleton-like, gambler, frequenter of the city's courtesan, and the wicked person are due to the sins (karmas) along with the omens and planetary influences spoken of in relation to the three humors (vata, pitta, and kapha). The lame and the greedy of others' food, and those of contrary dharma, are under the sway of their own karmas.
The deities do not give anything, nor do they take away; even Indra dies when his merits are exhausted.
Slowly speaking thus and joining his hands, he asked the Muni: "O Lord of Munis! The lame have heard the words of the great Muni expounding the three humors; they have applied their mind to discipline. What is the reason for others - is it the omens, the influence of inauspicious planets, the defect of nature, or the conduct of karmas?"
Then the Muni says: "O Sheth, listen! The deaf, the blind, the leper, the hunter, the Bhil, the destitute, the unfortunate, the dumb, the unclear in speech, the undistinguished, the wicked, the arrogant, the harsh, the evil-lipped, the wrathful, the afflicted by sorrows, the hunchback, the mutilated - there the radiant Satyadeva appeared like the sun. Bhutartha called him and said, 'O son, come, embrace me. Have you forgotten my name, O son? Your tender, charming son has become dust-covered, O son. What is the reason?'
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सापवणेसहाडमाणवहंगवे यामतेंपुषपञ्चायना सनणरंगहनरकासहपयहिंघड शविझावह स्युलहंजावई हौतिसकामायनशा) श्यसण्डेिस
सतसेनमंचान पिपुलणविता सुचलिउगुरुमडलिदकरहिं किसकिंवड
जुकावासोमवान
बईटहने म्नहवियास किपाश्दासदिकम्मचारू किं कारणुपंयन्त्रहामुर्णिदा नासपरिक्षा सुणिवर्णिदवहिरंहकहिवाहिल्लशिल दालिहिमा हुहवस्सलन अधिसिंहदणिहकह दहाहरुहडहयवहारिया हकपनासादिहीप संधदेहकापाणदाणा निलजखगवावणकर (सालापलखंडयाडचंडाळकालजरचारधरफरूमकेसा छोहाणला हयककालवेस बयारणिसविमनरटर्टेट पावणहोतिनऊटमट पंगुलपरहरपिंडावलद विवरण यहातिधम्म विसद्ध नठदेवदंतिणतेहरंति देवंदवियुमरकामरतिधिलारिसिपिरणिता सविन हिनिमुणि नियविनियतिठ पदविणयापरवहरमणण लायणडायखणधिविगामासात हिंटल क्लित्तरणितेन सूद कोकिटसल हिपेनदेदहिखट किंवासडिटमकतगर्नमाठे सुपरहटगश्कोमलालनतलासराइंहोताईचासिमडसुदरा निल्लोहियपियर्कताका
तथा वात से शरीर नष्ट हो जाता है। तब भूतार्थ मन्त्री ने पुन: कहा
की आग से आहत कंकाल रूपवाला, जुआड़ी, नगर की वेश्या का सेवन करनेवाला, और लुच्चा आदमी घत्ता-प्रकृतियों (वात-कफ और पित्त) के साथ कहे गये शकुन तथा ग्रह नक्षत्र आदि मनुष्य का पाप (कर्म) के कारण होते हैं। लँगड़े और दूसरे के घर के आहार के लालची और विपरीत धर्म से पवित्र चैतन्यस्वरूप समस्त जीवों के अपने कर्म के अधीन होते हैं ॥१७॥
होते हैं। न तो देवता लोग कुछ देते हैं, और न वे अपहरण करते हैं, देवेन्द्र भी पुण्य का क्षय होने पर मरते १८ इस प्रकार धीरे-धीरे बात कर, अपने हाथ जोड़ते हुए उन्होंने गुरुजी से पूछा-“हे मुनीन्द्र, लँगड़ेपन घत्ता-महामुनि के द्वारा प्रतिपादित बात भव्यजनों ने सुनी, उन्होंने अपना चित्त नियम में लगाया। दूसरे का कारण क्या है, क्या शकुन कारण है ? या खोटे ग्रहों का प्रभाव है, क्या प्रकृति-दोष है, या कर्मों का के धन और दूसरे की स्त्री पर उन्होंने अपनी आँख तक नहीं डाली ॥१८॥ आचरण है ?" तब मुनीन्द्र कहते हैं- "हे सेठ, सुनो ! बहिरा, अन्धा, कोढ़ी, व्याधा, भील, दरिद्री, दुर्भग, गूंगा, अस्पष्ट आवाजवाला, अविशिष्ट, दुष्ट, दर्पिष्ट, कठोर, दुष्ट ओठोंवाला, क्रोधी, दु:खों से धृष्ट, वंठ, छिन्न वहाँ सूर्य के समान तेजस्वी सत्यदेव दिखाई दिया, भूतार्थ ने उसे बुलाया और कहा- "हे पुत्र ! आओ,
ओठोंवाला, कान और नाक से रहित, दुर्गन्धित शरीरवाला कन्या-पुत्र, दीन, निर्लज्ज, कुबड़ा, कुशील, और मुझे आलिंगन दो। क्या तुम मेरा नाम भूल गये ? हे पुत्र, तुम्हारे कोमल सुभग पुत्र धूल-धूसरित होते
मांसभक्षी, दारु-विक्रेता, चाण्डाल, कील, जीर्णवस्त्र धारण करनेवाला, कठोर और खड़े बालोंवाला, क्रोध हुए भी छूने पर सुखद मालूम होते थे। हे पुत्र, प्रिय कान्ता के द्वारा पोंछी गयी Jain Education International
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