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The Jain term *muhidopavisizhihiti* refers to the state of being liberated from the cycle of birth and death. The text describes a king who has achieved this state and is now ruling his kingdom with compassion and wisdom. He is surrounded by his ministers and followers, who are all devoted to the Jain path. The king is described as being like a lotus flower, which blooms in the mud but remains pure and unstained. He is also compared to the sun, which dispels the darkness and brings light to the world. The text concludes by praising the king's virtues and his ability to bring peace and prosperity to his kingdom.
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मुहिदोपविसिझिहिति संसारविडनिवाण तिणणाधम्मश्रणराया कमकालजमलव लश्यासरणाणिसणेविषणवियववरण दियमंतिहिंसावयुगणा गयरिसिपदमरणहये। गणेण संपन्नाइरिगवणयरत संसासविचनारिविनिरुवाधना संगर्दछफंसेवितहिनिवसविास्या रुममिडमिन करिघंटासरहिं पसरियकरामरहि सयसाचियदिमनार छणयंडवनप्प कतिएपमाण दियदेदिइंडरिकणि पवषु साधरिपश्वयनिलयकहिणि अवलोश्यतेपनी तिबहिणि पणवियसासुयजामायण अविरयासणेहपसरिटरखएण आलिंगिठराग साणेजा अविनखुविवाल्वपहसियमुहड मिलियनलहामऽसिरिमन रणगंगाणजटणाणतानि यवंधचितियसरण तहिंतपवजनिवण सामित्रणराणिसम्मिहिलसामि मंतिविकिजा विबहपयाणुगामि पिरुवमणिवसावियनसुखहिसम्माणियसचिवउकोसविताएंव लाइनिनंतियाजोमडम्मरंपरिचिंतियाशं षडिवखुशखविखयहोनानाधिनस्जसमप्ये विवंडरी अपाखणघवनागलश्च सडकसपमप्पलुखअश्ठ सङसिवच्छईससिमुहे।
थिउद्धकतमहासहण कारवसस्याहदशराहागवडकायसामछसिदिचा चिरपा रकारटाभियवसध्यासुधारिसकामाममघश्याप्तमसरहरणीदिवायरणे सुप्पयनवाल
ये सुधीजन सिद्धि को प्राप्त होंगे। संसार के कष्टों से विरक्त होकर, जिनधर्म के अनुरागी तथा दोनों चरणकमलों और हँसते हुए मुखकमलबाला बालक लक्ष्मीमती और श्रीमती से मिला, मानो गंगा और यमुना नदियों से में अपने सिर को झुकानेवाले वधू-वर ने उन्हें प्रणाम किया। मन्त्रियों और श्रावकगण ने उनकी वन्दना की, मिला हो, अपने भाई का कल्याण सोचनेवाले उस बज़जंघ राजा ने वहाँ स्वामित्व के गुण में स्वामी को रखा, आकाशगामी ऋषिवर नभ के प्रांगण से चल दिये। बातचीत करके चारों ने निश्चित कर लिया कि वे पाप विद्वानों का अनुगमन करनेवाले को मन्त्री बनाया। राजा के द्वारा शासित समूचा देश उपद्रवरहित हो गया। से ही पशुयोनि को प्राप्त हुए।
सुधियों को सम्मानित किया गया और कोष संचित किया गया। वृत्तियों से सेनाओं को नियन्त्रित किया गया। घत्ता-मृगहस्त नक्षत्र बीतने पर और रात्रि में वहाँ रहकर सूर्योदय होने पर राजा वहाँ से निकला, हाथियों योग्य दुर्गों को चिन्ता की गयी। अशेष प्रतिपक्ष को नष्ट कर दिया गया। उसने पुण्डरीक को स्थिर राज्य में के घण्टास्वरों और फैली हुई सैंडों से दिग्गजों को भय से कँपाता हुआ॥२१॥
स्थापित कर दिया। स्वयं घर का वृत्तान्त पाकर अपनी पत्नी के साथ उत्पलखेड नगर गया। चन्द्रमुख चारों २२
अनुचरों के साथ वह सुधी सुख से राज्य करता हुआ रहने लगा। इस प्रकार कौन अपने लोगों को ऋद्धि देता अपनी शरीरकान्ति से पूर्णचन्द्र के समान प्रसन्न वह कुछ ही दिनों में पुण्डरीकिणी पहुँच गया। अनुन्धरा है? इतनी बड़ी सामर्थ्य और सिद्धि किसके पास है ? सहित तथा पतिव्रता के घर की पगडण्डो की तरह उसने अपनी बहन को प्रणाम करते हुए देखा। अविरत घत्ता-स्थिर, परकार्य में रत, अपने वंश का ध्वजस्वरूप सज्जन पुरुष की शरण में कौन नहीं जाता?
स्नेह से अपने बाहु फैलाये हुए जामाता ने सास को प्रणाम किया। राजा ने भानजे का आलिंगन किया। अविकल सघन अन्धकार के भार का हरण करनेवाले युद्ध में दीप्ति को कौन लाँघ सकता है? ॥ २२॥ Jain Education Internation For Private & Personal use only
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