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In the village of Yasayagaun, there lived a man named Yasasiha, who was a wealthy merchant. He had a beautiful wife named Srikanta, and they had three daughters: Srikanta, Madankanta, and Niamika. Niamika was a wicked woman who was known for her cruelty and greed.
The village of Patali was known for its wealth and prosperity, just like the body is known for its wealth of organs. It was a place of great beauty and abundance, but it was also a place of great suffering.
Yasasiha was a kind and generous man, but he was also a man of great strength and determination. He was like a bull, strong and powerful, but also gentle and compassionate. He was a true leader, and he was loved and respected by all who knew him.
Yasasiha's family was a source of great joy and pride for him. His daughters were beautiful and intelligent, and his wife was a loving and supportive partner. But his family was also a source of great sorrow. Niamika's wickedness caused much pain and suffering, and Yasasiha was heartbroken by her actions.
Despite the challenges he faced, Yasasiha remained a devout Jain. He was a man of great faith and devotion, and he always strived to live a life of righteousness and compassion. He was a true example of a Jain, and his story is a testament to the power of faith and the importance of living a life of virtue.
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यसयगांउनिहलाययसिह याडलिगामचठिधरिहदगारमहुआतदसिवसिलवा करियणपाठ सोसकरिखुवापविठलखखविनोखलसंकल्लमोदलहरूविनवणेणसणिठेवल जोकरिखनखन्दा उसकलाबद्धकषणेवरकामिणिकर कजलणगिहिवयधाराणियवखिउसेवार नागया
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माठदंडांडोपिया क्यखलखुणायमुहिश्राहारी कडियलबत्यिवकलवासईदडहरकफरूससिरकेसहदहजपाचाहिंसयपाइकहता।
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भूतग्राम (शरीर) की तरह प्रसिद्ध धन से समृद्ध पाटली गाँव है, जो वशी तपस्वी के समान गोरसाढ्य (गोरस पत्ता-और भी उसकी पत्नी से श्रीप्रभा (श्रीकान्ता), श्रीधर (मदनकान्ता) पुत्रियाँ हुईं, तीसरी मैं सबसे
और वाणीरस से युक्त) है, जो हस्तिपालक के समान, करिसन-जानउ (कर्षण और हाथी के शब्द के जानकार) छोटी नाम से निामिका विषम दरिद्रा और लोगों का बुरा करनेवाली॥१४॥ हैं, विशाल खलियानों से भरपूर होते हुए भी खलजनों से दूर हैं, हलधर होते हुए भी जिसे बलराम नहीं कहा जाता, जो हाथी के समान राजा के लिए ढोइय कर (कर देनेवाला, सँड पर ढोनेवाला) है, जो मानो हमारा घर मोक्ष से विशेषता रखता था। वह निष्कलश (कालुष्य और कलशों से रहित), नीरंजन (शोभा उत्तम कामिनी का हाथ था, वरकंकणु (बहुजल-धान्य से युक्त और स्वर्णवलय से युक्त) कच्छ से उज्ज्वल और कलंक से रहित) दिखाई देता है। मेघ के नष्ट होनेपर, नभ के आँगन के समान विद्धणु (धन और घन से जो मानो गिरिपथ की धारा के समान था, जो सेवक में रत के समान, निजवइ (अपने स्वामी, अपनी मेंढ़) रहित) तूणीर के समान जो निष्कण (अन्नकण) सारियरणु (युद्ध का निर्वाह करनेवाला, ऋण से निर्वाह की रक्षा करनेवाला था। उसमें नागदत्त नाम का वणिक् था, जो सुरति के समान अपनी वधू का प्रियवर करनेवाला) था। जो कुकवि के काव्य की तरह नीरस था, और जिस प्रकार वह, उसी प्रकार यह भी अलंकारों था। उसके नन्दी और नन्दीमित्र पुत्र हुए। नन्दीसेन भी उसके गर्भ में आया, फिर माता के मनमोहन, धरसेन से रहित था। आठ भाई-बहन। पीतल के दो हण्डे । खल और चनों की मुट्ठी का आहार करनेवाले । कमर तक (धर्मसेन) और विजयसेन पुत्र हुए।
वल्कलों के वस्त्र पहने हुए, निकले हुए स्फुट होउ, सफेद केशराशि। उस घर में हम दस लोग थे, आपस में
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