________________
सिणिवहींदरिसावियविविदविसरिगवाणखायलमलपियालवणाणायसलसपियाल वर्णमुहावजलहिविलगासिरा कंदरमुहिवपयरगसिरेचिता लडतासहिंणमिविण
ताडापर्वतश्रणि देवनागराजानिन मिविनमिसमर्पण।
माससहि गिरियडुपलाल स्थालिएासायरखे लए उलदंडवसजोलाण्यावलाविनाग्नि
जिसकी घाटियों में पक्षियों द्वारा स्वर्गपथ दिखाया जा रहा था, जो प्रियाल वृक्षों के वनों से युक्त था। पूर्वी और पश्चिमी समुद्रों, डूबे हुए छोरोंवाला और गुफाओं के मुखों से वनचरों को लीलता हुआ-
घत्ता-भटों से भयंकर विजयार्द्ध पर्वत को नमि और विनमि ने इस प्रकार देखा, जैसे रत्नों के घर सागरतट पर तुलादण्ड रख दिया गया हो॥१०॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org