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________________ आठयां पर्व एक दिवस रण मेध र पर्वनपर गया वहां एक बापिका देखी। निर्मल है जल जिसका अनेक जातिके कमलोंसे रमणीक है अर क्रौंच हंस चकवा सारिस इत्यादि अनेक पक्षियों के शब्द होय रहे हैं। अर मनोहर हैं तट जिसके, सुन्दर सिवाणों से शोभित है, जिसके समीप अर्जुन आदि बड़े बड़े वृक्षोंकी छाया होय रही है, जहां चंचल भीनको कलोलोंसे जलके छींटे उछल रहे हैं, तहां राव पने अति सुन्दर छै हजार राजकन्या क्रीड़ा करती देखीं, कैएक तो जल केलिमें छींटे उछाले हैं, कैएक कमलोंके बना घुनी हुई कमलवदनी कमलोंकी शोभाको जीते हैं। भ्रमर कमलोंकी शोभाको छोड करि इनके मुखपर गुंजार करे हैं, कैएक मृदंग बजावै हैं, कैएक वीण बजावै हैं, यह समस्त कन्या रावणको देखकर जल क्रीडाको तज खड़ी होय रहीं। रावण भी उनके बीच जाय जल क्रीडा करने लगे । तव वे भी जल क्रीड़ा करने लगीं। वे सर्व रावण का रूप देख काम वाणकर बींधी गई। सबकी दृष्टि यासों ऐसो लगी जो अन्यत्र न जाय। इसके अर उनके राग भाव भया । प्रथम मिलापकी लज्जा अर मदनका प्रगट होना सो तिनका मन हिंडौलेमें भूलता भया । तिन कन्याओं में जो मुख्य हैं उनका नाम सुना, राजा सुरसुन्दर राणी सर्वश्रीकी पुत्री पद्मावती नीलकमल सारिखे हैं नत्र जिसके, राजा वुध राणी मनोवेगा ताकी कन्या अशोकलता मानो साक्षात् अशोककी लता ही है कर राजा कनक राणी सन्ध्याको पुत्री विद्यत्प्रभा जो अपनी प्रभाकर बिजुलीकी प्रभाको लज्जावंत कर है, सुन्दर है दर्शन जिसका. बडे कुलकी बेटी, सब ही अनेक कलाकार प्रवीण उनमें ये मुख्य हैं मानो तीन लोककी सुन्दरता ही मूर्ति धरकर विभूति सहित आई है सा रावण ने छः हजार कन्या गंधर्व विवाहकर परणीं। वे भी रावणसहित नानाप्रकार की क्रीड़ा करती भई।। तब इनकी लार जे खोजे वा सहेली हुतीं इनके माता पिताओंसे सकल वृत्तांत जाकर कहती भई तब उन रोजाओंने रावण के मारिवको का सामन्त भे, ते भ्र कुटी चढाय होठ डसते आए नानाप्रकारके शस्त्रों की वर्षा करते भये, ते सफल अकेले रावणने क्षणमात्र में जीत लिए। वह भागकर कांपते राजा सुरसुन्दर पै गए, जायकर हथियार डार दिए अर बीनती करते भए 'हे नाथ ! हमारी आजीवकाको दूर करो अथवा घर लूट लेगो अथवा हाथ पांव छेदो तथा प्राण हरो, हम रत्नश्रवाका पुत्र जो रावण उससे लडनेको समर्थ नहीं, ते सात हजार राजकन्या उसने परणी अर उनके मध्य क्रीड़ा कर है, इंद्र सारिखा सुन्दर चन्द्रमा समान कांतिधारी, जिसकी क्रूर दृष्टि देव भी न सहार सकें, उसके सामने हम रंक कोन ? हमने घने ही देखे, स्थनूपुरका धनी राजा इन्द्र आदि इसकी तुल्य कोऊ नहीं। यह परम सु.दर महा शूरवीर है। ऐसे व न सुन राजा सुरसुन्दर महा क्रोधायमान होय राजा बुध अर कना सहित बड़ी सेना लेय निकस अर भी अनेक राजा इनके संग भए सो आकाशमें शस्त्रोंकी कांतिसे उद्योत करते आए। इन राजावोंको देखकर ये समस्त कन्या भयकर ब्याकुल भई अर हाथ जोड़कर रावणसे कहती भई कि हे नाय ! हमारे कारण तुम अत्यन्त संशयको प्राप्त भो, हम पुण्यहीन हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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