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________________ पद्म-पुराण गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहै हैं — हे श्रेणिक ! उस बालक के प्रभावसे बंधुवर्ग सर्व राक्षसी अर वानरवंशी अपने अपने स्थानक आय बसे, बैरियों का भय न किया । या मांति पूर्व भवण्यसे पुरुष लक्ष्मीको प्राप्त होय है । अपनी कीर्तिसे व्याप्त करी है दशों दिशा जिसने इस पृथ्वीमें बडी उपरका अर्थात् बूढा दोना तेजस्विताका कारण नहीं है जैसे ग्निक का छोटा ही बड़े वनको भस्म करे हैं र सिंहका वालक छोटा ही माते हाथियोंके कुम्भस्थल विदारे है अर चन्द्रमा उगता ही कुमुदोंको प्रफुल्लित करे है अर जगतका संताप दूर करे है और सूर्य उगता ही काली घटा समान अन्यकारको दूर करे है । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकाविषै रावणका जन्म और विद्या साधन कहनेवाला सातवां पर्व पर्ण भया ॥ ७ ॥ ER अथानन्तर दक्षिण श्रेणीमें असुरसंगीत नामा नगर तहां राजा मा विद्याधर बड़े योधा विद्याधरों में दैत्य कहावें जैसे रावण के बड़े राक्षस कहावें, इंद्रके कुल के देव कहावें । ये सब विद्या - धर मनुष्य हैं। राजा मयकी रानी हैमवती पुत्री मंदोदरी, जिसके सर्व श्रगोपांग सुन्दर, विशाल नेत्र, रूप र लापता रूपी जलकी सरोवरी इसको नवयौवनपूर्ण देख पिताको परणावनेकी चिंता भई । तब अपनी राणी हैमवतीसे पूछा 'हे प्रिये ! अपनी मन्दोदरी तरुण अवस्थाको प्राप्त भई सो हमकों बड़ी चिंता है। पुत्रियों के यौनके आरम्भसे जो संताप रूप अग्नि उपजे उसमें माता पिता कुम्ब सहित ईंधन के भावको प्राप्त होय हैं इसलिये तुम कहो, यह कन्या किसको परखावें ? गुग्ण में कुल में कांतिमें इसके समान होय उसको देनी । तत्र राणी कहती भई हे देव ! हम पुत्री के जनने अर पालने में हैं । परणावना तुम्हारे आश्रय है । जहां तुम्हारा चित्त प्रसन्न होय वहां देवी । जो उत्तम कुलकी बालिका हैं ते भरतार के अनुसार चाले है जब राणीने यह कहा, तब राजाने मन्त्रियोंसे पूछा । तव किसीने कोई बताया, किसीने इन्द्र बताया कि वह विद्याका पति है उसकी श्राज्ञा लोपते सर्व विधाधर डरें हैं । तत्र राजा मयने कही मेरी रुचि यह है जो यह कन्या रावणको देनी क्योंकि उसको थोड़े ही दिनों में सर्व विद्या सिद्ध भई हैं इसलिये यह कोई बड़ा पुरुष है जगनको आश्चर्यका कारण है तब राजाके वचन मारीच आदि सर्व मंत्रियोंने प्रमाण किये | मंत्री राजाके साथ कार्य में प्रवण हैं । तत्र भले ग्रह लग्न देख क्रूर ग्रह टार मारीचको साथ लेय राजा मय कन्याके परणावनेको कन्याको रावण पै ले चले रावण भीम नामा बनमें चन्द्रहास खड्ग साधनेको त्राए हुते घर चन्द्राहास की सिद्धिकर सुमेरुपर्वतके चैत्यालयोंकी बंदनाको गये हुते सो राजा मय हलकारोंके कहनेसे भीम नामा बनमें ar | कैसा है वह वन ? मानों काली घटाका समूह ही है जहां अति सघन र ऊंचे वृक्ष हैं, बनके मध्य एक ऊंचा महल देखा मानों अपने शिखरसे स्वर्गको स्पर्शे है । रावणने जो स्वयंप्रभ नामा नवा नगर बसाया है ताक समाय ही यह नगर है राजा मयने विमानसे उतर कर महलके समीप डेरा किया श्रर वादित्रादि सब आडम्बर छोड़कर केक निकटवीं लोकों सहित मन्दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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