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________________ पग-पुराण राक्षसर्वशी मेघरूप होकर इन्द्ररूप पर्वतपर गाजते हुये शस्त्रकी वर्षा करते भए । सो इन्द्र महायोधा कुछ भी विपाद न करता भया । किसीका वाण आपको लगने न दिया सबके बाण काट डारे अर अपने वाणसे कपि अर राक्षसोंको दवाए तब राजा माली लंकाके धनी अपनी सेनाको इन्द्र के बलसे व्याकुल देख इन्द्रसे युद्ध करणेको आय उद्यमी भए । कैसे हैं राजा माली ? क्रोध से उपजा जो तेज उससे समस्त आकाशमें किया है उद्योत जिन्होंने। इन्द्र अर मालीके परस्पर महायुद्ध प्रवरता । मालीके ललाट पर इंद्रने बाण लगाया सो मालीने उस वाणकी वेदना न गिनी अर इंद्रके ललाटपर शक्ति लगाई सो इंद्रके रुधिर झरने लगा अर माली उछलकर इंद्रपै पाया तब इन्द्रने महाक्रोबसे सूर्यके विम्ब समान चक्र से मालीका सिर काटा, माली भूमिमें पड़ा तब सुमाली मालीको मुत्रा जान अर इन्द्रको महाबलवान जान सर्व परिवार सहित भागा मालीको भाईका अत्यन्त दुःख हुवा अब यह राक्षस वंशी अर वानर बंशी भाजे तब इन्द्र इनके पीछे लगा तब सौम नामा लोकपालने जो स्वामीकी भनिगं तत्पर है इन्द्रसे विनती करी कि हे प्रभो ! जब मुझमा सेवक शत्रुओंके मारणको समर्थ है तब आप इनपर क्यों गमन करें सो मुझे आज्ञा देवो शत्रुओंको निर्मूल करू, तब इंद्रने आज्ञा करी, यह आज्ञा प्रमाण इनके पीछे लगा अर वाणों के पंज शत्रुओंपर चलाए । कपि अर राक्षसोंकी सैना बाणोंसे वेपी गई जैसे मेघकी धारा से गायके समू: ब्याकुल होंगे तैसे इनकी सर्व सेना ब्याकुल भई । अथानन्तर अपनी सेनाको व्याकुल देख सुमालीका छोटा भाई माल्यवान वाहुडकर सौमपर आया अर सौमकी छातीमें भिाण्डपाल नामा हथियार मारा वह मूर्षित हो भया सो जब लग वह सावधान होय तब लग राक्षसवंशी अर वानरवंशी पाताल लंका जा पहुंचे मानो नया जन्म भया, सिंहके मुख से निकले, सौमने सावधान होकर सन दिशा शत्रुओंसे शू-य देखी, तब लोकनिकरि गाइए है जस जाके बहुत प्रसन्न होय इन्द्रके निकट गया अर इन्द्र विजय पाय ऐरावत हस्तीपर चढ़ा लोकपालोंसे मंडित शिरपर छत्र फिरते चवर दुरते आगे अप्सरा नृत्य करती बड़े उत्साहसे महा विभूति सहित रथनूपुरमें आए । कैसा है रथनूपुर १ रत्नमयी वस्त्रों की ध्वजाओंसे शोभे है ठौर ठौर तौरणोंसे शोभायमान है जहां फूलनके देर होय रहे हैं अनेक प्रकार सुगन्धसे देवलोक समान है, सुन्दर नारियां झरोखोंमें बैठी इन्द्रकी शोभा देखें हैं इन्द्र राजमालमें आए अतिविनयसे माता पिता के पायन पड़े, माता पिताने माथे हाथ धरा अर इसके गात स्पर्श आशीस दीनी इन्द्र चैरियों को जीत अति आनन्दको प्राप्त भया प्रजाके पालने में तत्पर इन्द्रके समान भोग भोगे विजयार्थ पर्वत तो स्वर्ग समान अर राजा इन्द्र लोकमें इन्द्र समान प्रसिद्ध भया। गोतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहैं हैं-कि हे श्रेणिक ! अन लोकपालोंकी उत्पत्ति सुनो! ये लोक स्वर्गसे चयकर विद्याधर भए हैं राजा मकरध्वज राणी अदिति उसका पुत्र सोम नामा लोकपाल महा कांतिधारी सो इन्द्रने ज्योतिपुर नगरमें थापा पर पूर्व दिशा का लोकपाल किया भर राजा मेघरथ राणी वरुणा उनका पुत्र वरुण उसको इन्द्रने मेघपुर नगरमें थापा भर पश्चिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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