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________________ क्यार करते भए अर कैएक नामेचरण पर दाहिना पांव मेलते भये, के हैं राजायोंके पुत्र ? सुन्दर रूपवान हैं नवयौवन हैं कामकलामें निपुण हैं। दृष्टि तो कन्याकी ओर अर पगके अंगुष्ठ से सिंहासन पर कछू लिखो भए अर कैएक महामणियोंके समूहमे युक्त जो सूत्र कटिमें गाढा बंधा ही था तो भी उसे संवार ग ढा बांधते भए अर कैएक चंचल हैं नेत्र जिनके निकटवर्तीयोंसे केलिया करते भए, कैएक अपने सुन्दर कुटिल केशोंको संभारते भए, कैएक जापर भ्रमर गुंजार करे हैं ऐसे कमलको दाहिने हाथसे फिरावते भए मकरन्दकी रज विस्तारते भए इत्यादि अनेक चेष्टा राजाओंके पुत्र स्वयंवर मंडप में करते भए । कैसा है स्वयंवरमंडप ? जाविषे वीन बांसुरी मृदंग नगारे इत्यादि अनेक वाजे बज रहे हैं अर अनेक मंगलाचरण होय रहे हैं, बन्दीअनोंके समह सत्पुरुषोंके अनेक चरित्र वर्णन करे हैं, उस स्वयंवर मंडपमें सुमंगला नामा थाय जिसके एक हाथमें स्वर्णकी छड़ी एक हाथ में वेतकी छड़ी कन्याको हाथजोड़ महाविनय कर कहती भई । कन्या नाना प्रकारके मणि भूपणों कर साक्षात् कल्पवेल समान है। हे पुत्रो ! यह मार्तडकुण्डल नामा कुंवर नमस्तिलक के राजा चन्द्रकुमण्डल राणी विमला तिनका पुत्र है अपनी कांतिसे सूर्यको भी जीतनेहा अति रमणीक है अर गुणोंका मण्डन है इसके सहित रमणेकी इच्छा है तो बर, यह शस्त्र शास्त्र में निपुण है। तब यह कन्या इसको देख यौवनसे कछु इक चिगा जान प्रोगे चली । फिर धाय बोली-हे कन्या ! यह रत्नपुरके राजा विद्यांग राणी लक्ष्मी तिनका पुत्र विद्यासमुद्रघात नामा बहुत विद्याधरोंका अधिपति, इसका नाम सुन बैरी ऐसा कांपे जैसे पीपलका पत्र पवनसे कांपे । मनोहर हारोंसे युक्त इसका वक्षस्थल जिसमें लक्ष्मी निवास करे है तेरी इच्छा होय तो इसको घर । तब इसको सरल दृष्टि कर देख आगे चली। फिर वह थाय जो कन्याके अभिप्रायके जाननेहारी है, बोली-हे सुते! यह इन्द्र सरीखा राज वज्रशीलका कुवर खेचरभानु वज्रपंजर नगरका अधिपति है इसकी दोऊ भुजामें राज्यलक्ष्मी चंचल है तोहू निश्चल तिष्ठे है इसे देखकर अन्य विद्याधर आगिया समान भासे हैं यह सूर्य समान भासे है एक तो मानकर इसका माथा ऊंचा है ही अर रत्नोंके मुकुटसे अति ही शोभे है तेरी इच्छा है तो इसके कण्ठमें माला डार ! तब यह कन्या कुमुदनी समान खेचरभानुको देख सकुच गई । आगे चली, तब धाय बोली-हे कुमारी ! यह राजा चन्द्रानन चंद्रपुरका धनी राजा चित्रांगद राणी पद्मश्रीका पुत्र इसका वक्षस्थल महा सुन्दर चंदनसे चर्चित जैसे कैलाशका तट चंद्रकिरणसे शोभे तैसे शोभे है। उछले हैं किरणोंके समूह जिसके ऐसा मोतियोंका हार इसके उरमें शोभे है जैसे केलास पर्वत उछलते हुए नीझरनोंके समूहसे शोभे है इसके नामके अक्षरकरि वैरियोंका मन भी परम आनन्दको प्राप्त होय है अर दुख आताप करि रहित होय है। थाय श्रीमालासे कहे है-हे सौम्यदर्शन ! कहिए सुखकारी है दर्शन जिसका ऐसी जो तू, तेरा चित्त इसमें प्रसन्न होय तो जैसे रात्रि चंद्रमासे संयुक्त होय प्रकाश करे है तैसे इसके संगमकर आल्हादको प्राप्त हो । तब इसमें इसका मन प्रीतिको न प्राप्त भया जैसे चन्द्रमा नेत्रोंको आनन्दकारी है तथापि कमलोंको उसमें प्रसन्नता नहीं। फिर धाय बोली-हे कन्ये! मदरकुज नगरका स्वामी राजा मेरुकन्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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