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मा पर्न कुमारने कही-"तू मत डर ।" तब इसने कहा कि "जो आप आत्रा करो सो करू।" तत्र देव इसको गुरुके निकट ले गया । वह देव अर राजा यह दोनों मुनिकी प्रदक्षिणा देय नमस्कार कर जाय बैठे। देवने मुनिसे कही कि-"मैं बानर था सो आपके प्रसादसे देवता भया अर राजा विद्यु तकेशने मुनिसों पूछा कि मुझे क्या कर्तव्य है मेरा कल्याण किस तरह होय ? तब मुनि चार ज्ञानके धारक तमोधन कहते भए कि हमारे गुरु निकट ही हैं उनके समीप चलो। अनादि कालका यही धर्म है कि गुरुओंके निकट जाय चर्म सुनिये। प्राचार्य के होते सन्ते जो उनक निकट न जाय अर शिष्य ही धर्मोपदेश देय तो वह शिष्य नहीं, कुमार्गी है, आजार भ्रष्ट हैं ऐसा तपोनने कहा । तब देव अर विद्याधर चित्त चितववे भये कि ऐसे महा पुरुष हैं वे भी गुरु आज्ञा बिना उपदेश नहीं करे हैं । अहो ! ताका महात्म्म अति अधिक है। मुनिकी प्राज्ञा से वह देव अर विद्याधर मुनिके लार मुनिके गुरुपे गये । वहां जायकर तीन प्रदक्षिणा देय नमस्कार कर गुरुक निकट वेट। महा मुनिकी दिख देव र विद्याधर आश्चर्य को प्राप्त भये । महामुनिजी मूर्तिपकी राशिकर जी जा दीप्ति न कर देदीप्यमान है । देखर नेत्र कमल फूल गये। महा विन पान हा देव अर विद्याधर धर्मका स्वरूप पूछते भये ॥
के है मुनि जिनका मन प्राणियोंक हेतमें सावधान है अर रागादिक जो पंसारके कारण हैं जन प्रसंगते दर है जैस मेघ गम्भीर ध्यान कर गर्जे अर बरसे तैसे महागंभीर ध्वनिसे जगतके कल्याएके निमित्त परम धमला अमृत बरसाते भए । जव मुनि ज्ञानका व्याख्यान करन लगे तब मेघ जैसा नाद जान लता मंडपमें जो माथे वे नृतः करते भए-मुाने महते भए अहो देव विद्याधरो ! तुम बनाय सुनो, तीन ... बानन्द करणहारे त्रीजिनराजने जो धर्मका स्वरूप कहा है, सा में तुमका कहूँ । कई एक माया नीबुद्धि ह, विचाररहित जडचित्त हैं तं अधर्म ही को धर्म जान सेवत जा मागका न ज ... कालन मा नियालित स्थानक को न पहुंचे। मंदमति मिथ्यादृष्टि विषयाभिलापी जीव हिसासे उपजा जो अधर्म उसको जान सवे, ते नरक निगोदके दुख भोग ह ने अज्ञानी खाटे दृष्टान्तोंक समूहसे भरे महापापके पुंज मिथ्या ग्रन्थोंके अर्थ तिनकर धर्म जान प्राखिघात कर हैं वे अनन्त संसार भ्रमण करे हैं। जो अधर्मचर्चा करके वृथा बकवाद करे हैं तं दंडास आकाश .1 फूट है सो कैप कूटा जाय ? जो कदाचित् मिथ्यादृष्टयाक काय क्लेशादि तप हाय अर शब्द ज्ञान भी होय तो भी मुक्तिका कारण नही, सम्यकदशन बिना जो जापना हे सो ज्ञान नही ह अर जा आचरण हे सो कुमारित्र है मिथ्याटियों का जो तप त है सो पाषाण राबर ह और ज्ञानः पुरूषोक जो तप है सा सूर्य माण समान है । धर्मका मूल जीवदया है अर दयाका मूल कामल परिणाम है, सो कामल परिणाम दुष्टोके केस हाय अर परिग्रहधारा पुरुषोंको प्रारम्भ करने से हिंसा अवश्य होय है इसलिए दया के निमित्त परिग्रहका आरम्भ तजना चाहिए तथा सत्य वचन धर्म हैं परन्तु जिस सत्यसे जीवों को पीड़ा होय सो सत्य नहीं भूठ ही है अर चोरीका त्याग करना परनारी तजनी परिग्रहका प्रमाण करना संतोष व्रत थरना इन्द्रियाक विषय निवारना कषाय क्षीण करने, देव गुरु धर्मका
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