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________________ छठा पर्व किया । सो राजा श्री एट इनवरोको देखकर पाश्चयका प्राप्त भए अर इन सहित रमें मीठे २ भोजन इनको दिये और इसके चित्राम कढाये। पीछे उनके बंशमें जो राजा भये उनने मंगलीक कार्यों में इनके चित्राम मढ़ाये अर वानरोंसे बहुत प्रीति रखी इसलिये पूर्व रीति प्रमाण अब भी लिखे हैं ऐसा कहा। तब राजा क्रोध तज प्रसन्न होय आज्ञा करते भए जो हमारे बड़ोने मंगल का में इनके चित्राम लिखाए सो अब भूमिमें मत डारो जहां मनुष्यके पाय लगे, मैं इनको मुकटपर राखूगा पर ध्वजावोंमें इनके चिन्ह कराओ अर महलोंके खिर त छत्रोंके शिख पर इनके चिन्ह करायो यह आज्ञा मंत्रियोंको करी सोमंत्रियोंने उस ही भांति मिया, र जाने गुणवती राणीसहित परम सुख भोगो विजयाकी दोऊ श्रेणीके जीतनका मा किया बड़ी च रंग सेना लेकर विजयार्थ गए, राजाकी ध्वजाओंमें अर मुकुटोंमें कांपयोंक चिन्ह हैं । राजाने विजयार्थ जायकर दोऊ श्रेणी जीतकर सब राजा यश किए। सर्व देश अपनी आज्ञा में किये, किसीका भी धन न लिया, जो बड़े पुरुष हैं तिनका यह व्रत है जो राजाओंको नवावें, अपनी अाज्ञामें करें, किसीका धन न हरें । सो राजा सब विद्यधरोको आज्ञामें कर पीछे किहकूपुर आए। विजयाधके बड़े २ राजा लार आये, सर्व विद्याधरोंका अधिपति होकर धने दिनतक राज्य किया लक्ष्मी चंचल थी सो नीतिकी वेड़ी डाल निश्चल करी । तिनके पुत्र कषिकेतु भए जिनके श्रीप्रभा राणी बहुत गुणकी धारणहारी । ते राजा कपिकेतु अपने पुत्र विक्रमसम्पन्नको राज्य देय वैरागी भये अर विकमसम्पन्न प्रतिबल पुत्रको राज्य देय वैरागी भए, यह राज्य लक्ष्मी विपकी वेलके समान जानो । बड़े पुरुषोंके पूर्वोपार्जित पुण्यके प्रभावकर यह लक्ष्मी बिना ही यत्न मिले है परन्तु उनके लक्ष्मीमें विशेष प्रीति नहीं, लक्ष्मी को तजते खेद नहीं होय है । किसी पुण्यके प्रभाव राज्य लक्ष्मी पाय देवोंके सुख भोग फिर वैराग्यको प्राप्त होपकर परमपदको प्राप्त होय है। मोक्षका अविनाशी सुख उपकरणादि सामग्रीक नाधीन नहीं, निरन्तर आत्माधान है, वह महासुख अंतरहित है अविनश्वर है । ऐसे सुखको कौन न पछि। राजा प्रतिबनके गगनानन्द पुत्र भए, उसके खेचरानन्द, उसके गिरिनन्द इस भांति बानर बंशियों के बंशमें अनेक राजा भए । वे राज्य तज वैराग्य धर स्त्रग मोक्षको प्राप्त भये । इस बंशके समस्त राजाप्राक नम अर पराक्रम कौन कह सके । जिसका जैसा लक्षण होय सो तैसा ही कहावे, सेवा करे सो सेक कहावे, धनुष धारै सो धनुषधारी कहावै, परकी पीड़ा टाले सो शरणागति प्रतिपाल होय क्षत्री कहावै । ग्रहाचयं पाले सो ब्राह्मण कहावे, जो राजा राज्य तजकर नि होय सो मुनि पदावे । श्रम कहिये तप धारे सो श्रमण कहावे । यह बात प्रगट ही है लाठी राखे सो लाठीबाला कहावे । तैले यह विद्याधर ध्वजावों पर व नरोंके चिन्ह राखते भये इसलिए बानरवंशी कहाये (क्योंकि संतमें वंश बांसको कहते हैं पर चुलको भा कहते हैं। परन्तु यहां वंश शब्दका बाचक है। वानरोंके चिन्हकर युक्त वंश बास वाला जो जा सो भई वानरवंश उस ध्वजावाले यह राजा बानरवंशी कहलाए) भगवान श्रीवासुपूज्यके समय राजा अपरप्रभ भए उनने वानरोंके चिन्ह मुकुट ध्वजामें कराए तब इनके कुलमें यह रीति चली आई इस भांति संक्षेपसे वानरवंशीयोंकी उत्पत्ति कही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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