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एकatasai पर्ण
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भगवान बलदेव अनंत लक्ष्मी कांतिकर संयुक्त आनंदमूर्ति केवली तिनकी इन्द्रादिक देव महाहर्ष के भरे अनादि रीति प्रमाण पूजा स्तुतिकर विनती करते भये, केवली विहार कीया, तब देव विहार करते भये ।
इतिश्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनकाविषै
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रामकू' केवल ज्ञानकी उत्पत्ति वर्णन करनेवाला एकसौ वाईसवां पर्ण पर्ण भया ।। १२२ ।। अथानन्तर सीताका जीव प्रतींद्र लक्ष्मणके गुण चितार लक्ष्मणका जीव जहां हुता अर खरदूषण का पुत्र शम्बूक असुरकुमार जातिका देव जहां था तहां जायकर ताकू सम्यग्ज्ञानका ग्रहण कराया सो तीजे नरक नारकिनिकू वाधा करावे हिंसानंद रौद्रध्यान में तत्पर पापी नारकोको परस्पर लडावे | पापके उदय कर जीव अधोगति जाय। सो तीजे तक तो असुरकुमारहू लडावे आगे सुरकुमार न जांय, नारकी ही परस्पर लड़ें। जहां कैयकनिको अग्निकुण्ड में डारे हैं सो पुकारें हैं। कैकनिक कांटेनिकर युक्त शाल्मली वृक्ष, तिनपर चढाय घसीटें हैं। कैयक निको लोहमई मुद्गरनिकर कूटै हैं । अर जे मांस आहारी पापी तिनको उनहीका मांस काटि वा हैं र प्रज्वलित लोहे के गोला तिनको मुखमें मारि २ दे हैं । अर कैक मारके मारे भूमिमें लोटे हैं और माया मई श्वान मार्जार सिंह व्याघ्र दुष्ट पक्षी भर्खे हैं तहां तिर्यच नाहीं, नर्ककी विक्रिया हैं। कैयकनिको सूली चढावे हैं र वज्र मुद्गरनितें मारे हैं, कई एकनिको कुम्भीपाक में डारें हैं, कैयकनिको तातातांचा गालि २ प्यावे हैं अर कहे हैं ये मदिरा पानके फल हैं। कैयकों को काठमें बांधकर तसे चीरे हैं अर कैयकोंको कुठारोंसे काटे हैं, कैयकों को घानी में पेले हैं कैयकोंकी यांख काढे हैं हैं की जीभ काढे हैं वह क्रूर कैयकों के दांत तोडे हैं इत्यादि नारकीनिको अनेक दुख सो अवधिज्ञानकर प्रतीन्द्र नारकीनिकी पीडा देख शंबूक के समझायत्रेको तीजी भूमि गया सो असुरकुमार जातिके देव क्रीडा करते थे वे तो इनके तेजसे डर गए अर शम्बूकको प्रतींद्र कहते भए – अरे पापी निर्दई तैंने यह क्या आरंभा जो जीवोंको दुख देवे है । हे नीच देव ! क्रूर कर्म तज क्षमा पकड, यह अनर्थ के कारण कर्म तिनकर कहा अर यह नरकके दुःख सुनकर भय उपजे है तू प्रत्यक्ष नारकियोंको पीडा करे है करावे है सो तुझे त्रास नहीं यह वचन प्रतींद्रके सुन शंबूक प्रशांत भया, दूसरे नारकी तेज न सह सके रोवते भये अर भागते भए तब प्रतींद्रने कही हो नारकी हो मुझसे मत डरो जिन पापोंकर नरक में खाए हो तिनसे डरो, जब या भांति प्रसीद्रने कही तब उनमें कैयक मनमें विचारते भए जो हम हिंसा मृषावाद परधन हरण परनारिरमण बहु आरंभ बहुपरिग्रहमें प्रवर्ते रौद्रध्यानी भए उसका यह फल है भोगों में आसक्त भए क्रोधादिककी तीव्रता भई खोटे कर्म कीये उससे ऐसा दुख पाया देखो यह स्वर्गलोकके देव पुण्यके उदयसे नानाप्रकार के विलास करे हैं रमणीक विमान चढे जहां इच्छा होय वहां ही जांय या भांति नारकी विचारते भए अर शम्बूकका जीव जो असुरकुमार उसको ज्ञान उपजा फिर रावण के जीवने प्रतींद्र से पूछा- तुम कौन हो ? तब उसने सकल वृत्तांत कहा मैं सीताका जीव तपके प्रभावकर सोलवें स्वर्ग में प्रतीन्द्र भया श्रर श्रीरामचन्द्र महामुनींद्र होय ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनी अंतरायकर्मका नाशकर केवली भए सो धर्मोपदेश देते जगतको तारते भरत क्षेत्र में तिष्ठे हैं नाम गोत्र वेदनी आयुका अंतकर पर
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