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एकसौअठारहवा 4 पृथिवीका पति जो राम सो क्रोध करि कहता भया हे कुबुद्धि हो मेरा भाई पुरुषोत्तम उसे अमंगलके शब्द क्यों कहो हो ऐसे शब्द बोलते तुमको दोष उपजेगा या भति कृतांतवकके जीवके और रामके विवाद होय है उस ही समय जटायुका जीव मूवे मनुष्य का कलेवर लेय रामके आगे आया उसे देख राम बोले मरेका कलेवर काहेको कांधे लिए फिरो हो तब उसने कही तुम प्रवीण होय प्राणरहित लक्ष्मणके शरीर क्यो लिए फिरो हो पगया अणुमात्र भी दोष देखो हो अर अपना मेरु प्रमाण दोष नहीं देखो हो, सारिखेकी सारिखेमे प्रीति होय है मो तमको मूढ देख हमारे अधिक प्रोति उपजी है हम वृथा कार्यके करणहारे तिनमें तुम मुख्य हो हम उन्मत्त ताकी ध्वजा लिए फिरे हैं सो तुमको अति उन्मत्त देख तुम्हारे निकट पाए हैं।
या भांति उन दोनों मित्रोंके वचन सुन राम मोहरहित भया शास्त्रनिके वचन चितार सचेत भए जैसे सूर्य मेघ पटलसे निकस अपनी किरण कर देदीप्यमान भासे तैसे भरतक्षेत्रका पति राम साई भया भानु सो मोहरूप मेघपटलसे निकम ज्ञानरूप किरणनिकर भासता भया, जैसे शरदऋतुमें कारी घटासे रहित आकाश निर्मल सोई तैसे रामको मन शोकरूप कर्दमसे रहित निर्मल भासता भया, राम समस्त शास्त्रनिमें प्रवीण अमृत समान जिनवचन चितार खेदरहित भए, धीरताके अवलंवनकर ऐसे सोहै जैसा भगवानका जन्माभिषेक में सुमेरु सोहै जैसे महा दाहके शीतल पवन के स्पर्शसे रहित कमलोंका वन सोहे अर फूले तैसे शोकरूप कलुषतारहित रामका चित्त विकसता भया जैसे कोई रात्रीके अन्धकारमें मार्ग भूल गया था और सूर्यके उदय भए मार्ग पाय प्रसन्न होय अर महा क्षुधाकर पीडित मन वांछित भोजन खाय अत्यन्त आनन्दको प्राप्त होय पर जैसे कोई समुद्रके तिरिवेका अभिलाषी जहाजको पाय हर्षरूप होय अर वनमें मार्ग भूला नगरका मार्ग पाय खुशी होय अर तपाकर पीडित महासरोवरको पाय सुखी होय, रोग कर पीडित रोगहरण औषध को पाय अत्यन्त आनन्दको पावै, अर अपने देश गया चाहे पर साथी देख प्रसन्न होय अर बंदीगृहसे छूटा चाहै अर बेडी कट जैसे हर्षित होय तैसे रामचन्द्र प्रतिबोधको पाय प्रसन्न भए। प्रफुल्लित भया है हृदय कमल जिनका परम कांतिको धारते आपको संसार अंधकूपसे निकसा मानते भए, मनमें जानी नवा जन्म पाया श्रीराम विचार हैं अहो डाभकी अणीपर पडी
ओंसकी बूंद ता समान चंचल मनुष्य का जीतव्य एक क्षणमात्रमें नाशको प्राप्त होय है चतुर्गति संसारमें भ्रमण करते मैंने अत्यन्त कष्टसे मनुष्य शरीरको पाया सो पृथा खोया कौन के भाई, कौन के पुत्र, कौन का परिवार, कौन का धन कौनकी स्त्री ? या संसारमें या जीवने अनंत संबंधी पाये एक ज्ञान दुर्लभ है या भांति श्रीराम प्रतिबुद्ध भए तब वे दोनों देव अपनी माया दूरकर लोकों को आश्चर्यकी करणहरी स्वर्गकी विभूति प्रकट दिखावते भए शीतल मंद सुगन्ध पवन बाजी अर आकाशमें देवोंकेविमान ही विमान होय गए अर देवांगना गावती भई वीण बांसुरी मृदंगादि बाजते भए वे दोनों देव रामसे पूछते भए आप इतने दिवस राज्य किया सो सुख पाया ? तब राम कहते भये, राज्यमें काहेका सुख ? जहां अनेक व्याधि है जो याहि तज मुनि भये वे सुखी अर मैं तुमको पूछ हूं--तुम महा सौम्यवदन कोन हो पर कौन कारण कर मोसू
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