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पद्मपराण
१ मृगी २ सूकरी ३ हथिनी ४ महिषी ५ गो ६ वानरी ७ चीती ८ ल्याली ६ गार १० जलचर स्थलचरके अनेक भत्र ११ चिनोत्सव १२ पुरोहितकी पुत्री वेदवती १३ पांचत्रे स्वर्ग देश अमृतवती १४ बलदेवकी पटराणी १५ सोलहवें स्वर्ग प्रतींद्र १६ चक्रवर्ती १७ अहमिद्र १८ रावणका जीव तीर्थकर होयगा ताके प्रथम गणधरदेव होय मोक्ष प्राप्त होयगा । भगवान सकलभ्रूण विभीषण से कहैं हैं- श्रीकांताका जीव कैयक भवमें शंभु प्रभासकुन्द होय अनुक्रमसे रावण - मया जाने अर्द्ध भरत क्षेत्र में सकल पृथिवी बश करी, एक अंगुल आज्ञा सिवाय न रही अर गुणवतीका जीव श्रीभृतिकी पुत्री होय अनुक्रमकर सीता भई, राजा जनककी पुत्री श्रीरामचन्द्रकी पटराणी विनयवती शीलवती पतिव्रतानि में अग्रसर भई जैसे इन्द्रके रात्री चंद्रक रोहिणी रविके रेखा चक्रवर्ती सुभद्रा तैसे रामके सीता सुन्दर है चेष्टा जाकी पर जो गुणवतीका भाई गुणवान् सो भामण्डल भया श्रीरामका मित्र जनक राजाकी राणी विदेहा के गर्भ में युगल बालक भए भामण्डल भाई सीता वहिन दोनां महा मनोहर पर यज्ञवलि ब्राह्मणका जीव विभीषण भया श्रर बैल का जीव जो नमोकार मंत्र के प्रभाव स्वर्ग गति नर गतिके सुख भोगे यह सुग्रीव कपिध्वज भया भामण्डल सुग्रीवर तू पूर्व भवकी प्रीति कर तथा पुण्य के प्रभाव कर महा पुण्याविकारी श्रीराम ताके अनुरागी भये । यह कथा सुन विभीषण बालिके भव पूछता भया तब केवली कहे है - है विभीषण, तू सुन, राग द्वेषादि दुखनिका के समूह कर भरा यह संसार सागर चतुर्गति मई तामें वृन्दावन में एक कालेरा मृग सो साधु स्वाध्याय करते हुने तिनका शब्द अन्तकाल में सुन कर ऐरावतक्षे त्रमें दित नामा नगर तहां विहित नामा मनुष्य सम्यग्दृष्टि सुन्दर चेष्टाका धारक ताकी स्त्री शिवमति ताके मेवदत्त नामा पुत्र भया सो जिनपूजामें उद्यमी भगवानका भक्त अणुव्रत धारक समधिमरण कर दूजे स्वर्ग देव भया, वहांसे चषकर जम्बूद्वीप में पूर्व विदेह विजियावतीपुरी ताके समीप महा उत्साहका भरा मत्तकोकिला नामा ग्राम ताका स्वामी कांतिशोक ताकी स्त्री रत्नांगिनी तांके स्वप्रभ नामा पुत्र भया महा सुंदर जाको शुभ आचार भावै सो जिनधर्म में निपुण संयतनामा मुनि होय हजारों वर्ष विधिपूर्वक बहुत भांति के महा तप किये, निर्मल है मन जाका सो तपके प्रभावकर अनेक ऋद्धि उपजी तथापि अति निर्गर्व संयोग सम्बन्ध में ममताको तज उपशम श्रेणी धार शुक्ल ध्यानके पहिले पाएके प्रभावतें सर्वार्थसिद्धि गया सो तेतीस सागर अहमिंद्र पदके सुख भोग राजा सूर्यरज ताके वालि नामा पुत्र भया ।
विद्याधरनिका अधिपति किहकन्धपुर का धनी जिसका भाई सुग्रीव सो महा गुणवान सो जब रावण चढ आया तब जीव दयाके अर्थ बालीने युद्ध न किया सुग्रीवको राज्य देय दिगम्बर भया सो जब कैलाशमें तिष्ठे था, और रावण आय निकसा, क्रोधकर कैलाशको उठायवेको उद्यमी मया सो बाली मुनि चैत्यालयोंकी भक्तिसे ढीला सों अंगुष्ठ दबाया सो रावण दबने लगा तब राणी ने साधुकी स्तुति कर अभयदान दिवाया । रावण अपने स्थानक गया अर वाली महा मुनि गुरुके निकट प्रायश्चितनामा तप लेय दोष निराकरण कर क्षपक श्रेणी चढ कर्म दग्ध किये लोके शिखर सिद्धिक्षेत्र है वहां गए जीवका निज स्वभाव प्राप्त भया अर वसुदत्त के अर श्रीकांत के गु
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