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________________ पभ-पुराण अमरक्ष उदधिरक्ष भानुरक्ष ये तीन पुत्र भए । वह सब नाना प्रकारके शुभ कर्मकर पूर्ण जिनका बड़ा विस्तार, अति ऊचे जगतमें प्रसिद्ध, मानो तीन लोक ही हैं। अथानन्तर अजितनाथ स्वामी अनेक भव्य जीवोंको निस्तारकर सम्मेदशिम्बरसे सिद्धपद को प्राप्त भए। सगरके छाणवें हजार राणी इन्द्राणीतुल्य अर साठ हजार पुत्र ते कदाचित् बन्दना के अर्थ कैलास पर्वतपर आये । भगवान के चैत्यालयों की बन्दनाकर दण्डरना कैलासके चौगिरद खाई खोदते भए । सो तिनको क्रोधकी दृष्टिस नागेन्द्रने देखा अर ये सब भस्म हो गये । उनमें से दो आयु कर्मके योगसे बचे एक भीमरथ और दूसरा भगीरथ। तब सबने विचारा जो अचानक यह समाचार चक्रवर्तीको कहेंगे तो चक्रवर्ती तत्काल प्राण तजेंगे, ऐसा जान इनको मिलनेसे अर कहनेसे पंडित लोकोंने मना किए, सर्व राजा अर मंत्री जिस विधि आये थे, उसी विधिसे आये। विनयकर अपने २ स्थानक चक्रवर्तीके पास बैठे । तब एक वृद्ध कहता भया कि 'हे सगर ! देख, इस संसारकी अनित्यता, जिसको देखकर भव्य जीवोंका मन संसारमें नहीं प्रवृत्ते है आगे तुम्हार समान पराक्रमी राजा भरत भये, जिसने छै खण्ड पृथ्वी दासीके समान वश करी उसके अर्ककीर्ति पुत्र भए महा पराक्रमी जिनके नामसे सूर्य वंश प्रवृत्ता इस भांति जे अनेक राजा भये ते सर्व कालवश भये अर राजाओंकी बात तो दूर ही रहो जे स्वर्ग लोकके इन्द्र महा विभवयुक्त है ते भी क्षणमें विलाय जाय हैं अर जे भगवान तीर्थकर तीनों लोकके आनन्द करण हारे हैं वे भी आयुके अन्त होनेपर शरीरको तज निर्माण पधारे हैं। जैसे पक्षी वृक्ष पर रात्रिको प्राय बसे हैं प्रमात अनेक दिशाको गमन करे हैं, तैसे यह प्राणी कुटुम्बरूपी वृक्ष में आय बसे हैं। स्थिति पूरीकर अपने कर्मवश चतुर्गतिमें गमन करे हैं, सबसे बलवान महाबली यह काल है, जिसने बड़े २ बलवान निर्वल किये । अहो ! बड़ा आश्चर्य है। बड़े पुरुषोंका विनाश देखकर हमारा हृदय नहीं फट जाय है । इन जीवों के शीर सम्पदा अर इष्टका संयोग सर्व इन्द्रधनुष, वा स्वप्न, वा विजली, वा झाग, वा बुदबुदा समाज जानना । इस जगतमें ऐसा कोई नहीं है, जो कालसे बचें। एक सिद्ध ही अविनाशी हैं अर जो पुरुष पहाड़को हाथसे चूर्ण कर डारें अर समुद्रको शोष जावें, तो भी कालके बदन में प्राप्त होय हैं । यह मृत्यु अलंध्य है। यह त्रैलोक्य मृन्युके वश है, केवल महामुनि ही जिनधर्मके प्रसादसे मृत्युको जीते हैं। जैसे अनेक राजा कालवश नये तैसे हमह कालवश होवेंगे। तीन लोकका यही मार्ग है। ऐमा जानकर ज्ञानी पुरुप शोक न करें, शोक संगारका कारण है, इस भांति वृद्ध पुरुषने कही अर इस भांति सर्व सभाके लोगोंने कही ताही समय चक्र. वर्तीने दोऊ बालक देखे । तब मन में विचारी कि सदा ये साठ हजार भेले होय मेरे पास श्रावते हुते नमस्कार करते अर आज ये दोनों ही दीनदन दीखे हैं इसलिये जानिये है कि अर सब काल वश भए अर ये सब राजा मुझे अन्योक्ति कर समझावै हैं । मेरा दुःख देखनेको असमर्थ हैं, ऐसा जान राजा शोकरूप सर्पसा डंया हुआ भी प्राणोंको न तजता भया, मंत्रियोंके वचनसे शको दवाकर संसारको कदली (भेला ) के गर्भवत् असार जान इन्द्रियोंके मुत छोड़ भगीरथको सज देकर जिन दीक्षा आदरी, यह पूर्ण चे खण्ड पृथ्वी जीर्ण तृण समान जान तजी, भीमरथ तहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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