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________________ दान-प्रशस्ति ल्यू दो दिन पहले सातवी प्रतिमाके व्रत श्रीशान्तिसागर जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी । लय और मृत्यु से कई घंटे पहले सल्लेखना शास्त्रा- का एक नियम है,कि कोई दाता सम्यग्ज्ञानप्रच नुसार ग्रहण की धार्मिक परिणामो से मोहको दूरकर कोई द्रव्य दे तो उसस दिगम्बर जैन शार श्री पंचपरमेष्ठिके गुणों का ध्यान करते हुए आपने प्रकाशन करदिया जायगा । ग्रन्थ लागत मूल्य इम शरीरको छोडा । सर्वसाधारणको दिये जायगे । जिज्ञासु अर आपका जन्म विक्रमसंवत् १९३५ में हुआ और अजैनोंको विनामल्य अर्धमूल्य पौन मूल्य में सल्लेखनाव्रत (मृत्यु) विक्रमसंवत् २०१५ के द्वितीय जांयेगे । मूल रकम उठआने पर उनके ही ना श्रावणवदी १२ वारसको समाप्त हुआ। दूसरा तीसग ग्रन्थ प्रकाशित होगा इसतरह सेठानो प्यारी देवी लालगढ और उसके पास वारके दानसे जिनवाणीका प्रचार और दार पडोसके गांवोमें “लक्ष्मी” नामसे प्रासद्ध थीं। यश चिरकालतक होता रहता है। आपके शवके साथ गांवके अजैन लोगोने ठाठ वाठ सेठ भंवरीलाल जी वाकलीवाल ला से हरिकीर्तन करते हुए गमन किया और अग्नि- निवासी आसामप्रवासीन भी उक्त नियमान संस्कार में भक्तिपूर्वक योग दिया। इनके परोपकारी। दोहजार रु० नगद और एक हजार प्रति श्रीप सरल स्वभावकी उदारता आदि गुणों की वरावर व्रत पूजाविधान की प्रदान की हैं। आपके इस चर्चा कर लोग न अघाते थे। से आपके पितामाता की स्मृति में सेठ खूब आपके मृत्यु समय आपकी कौटुम्बिक जन प्यारी देवी बाकलीवाल स्मारक जैन ग्रन्थम विभूति नीचे लिखे प्रकार थी - प्रकाशित कीगई है जिससे हमेशा कोर्तिस्थायी है पुत्र ३,पुत्रबधू ४, पुत्री ४, जमाई ३, पौत्र . १७, पौत्रवधू ११ पौत्री ११, दौहित्र (लडकाक एतदर्थ आपको धन्यवाद है। लडके) २३ दौहित्रो २७, प्रपौत्र (पोतोंके पुत्र) ८, यह सस्था ईसवी सन १६१३ में स्व० ५० प प्रपौत्री ५, प्रदौहित्रां। (दोहित्रीकी पुत्रियां,) २२ कुल लालजी वाकलोवालने धर्मरत्न पं० लालाराम शास्त्री चावली (आगरा) के सहयोगसे वनार १४८ स्त्रीपरुष थे । अपर जीवन में लघु पत्र स्थापित की थी। सन् १:१५ में इसका स्थानपा आसुलालजी का और लघु जामाता कवरीलालजी तेन कलकत्ताम हुआ और मंत्रााका काय कर का वियोग हुआ और उसको वडे धैर्थक साथ हुआ । आपने सहन यिा । संस्थान श्रीसमयप्राभृत, तत्त्वार्थराजवारि - इतना बडी म्र इतनी बडी संपत्ति और इतना श्रीगोम्मटसारजी दो संस्कृत टीका लिहा टोका स बडा परिवार बडे भारतमे मिलता है। आदि बडे२ ग्रन्थ आजतक प्रकाशित किये है : ऐसे धार्मिक व्यक्तिवोंके पुत्र भी धार्मिक होते भविष्य में भी प्रकाशित करता है इस हैं, रत्नोंकी खानिमें रत्न हा पैदा होते हैं । इसलिये सचारु प्रांधकालय संरक्षक समिति गाठत कर श्रापके पुत्रां--सेठ भंवरीलालजी, नेमिचन्दजी इन्द्र गई है । चन्द जी दादानमलजी आदि ने आपके नाग से चैत्र श्रीवीरसंवत् २४८५ एक जै। ग्रन्थमाला प्रकशित कराई है जिसका ब्रह्मचारी श्रीलाल जैन काव्यनीर्थ पहला पुष्प ‘श्रीपुरन्दरबतपूजाविधान" प्रकाशित महामंत्री हुआ है और अब यह "श्रीपदापराणजी भाषा" श्रीशान्तिसागर जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी स वृहद् ग्रंथ दूसरा पुप्प प्रकाशित किया गया है। श्रीमहावीरजी (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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