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चवालीसची पव जानी भाई पै भीड पडी, तब रामने जानकी को कहा-हे प्रिये ! भय मत करे क्षणएक तिष्ठ, ऐसे कह निर्मल पुष्पनिविष छिपाई अर जटायूको कहा-हे मित्र, स्त्री अबलाजाति है याकी रक्षा करियो , तुम हमारे मित्र हो, सहधर्मी हो, ऐसा कहकर आप धनुषबाण लेय चाले, सो अपशकुन भए । सो न गिने महा सतीको अकेली वनविष छोड शीघ्र ही भाई पै गए । महारणमें भाईके आगे जाय ठाढे रहे, ता समय रावण सीताके उठायवेशो आया । जैसा माता हाथी कमलिनीको लेने प्रावे, कामरूप दाहकर प्रज्वलित है मन जाका, भूल गई है समस्त धर्मकी बुद्धि आकी सीताको उठाय पुष्पक विमानमें थरने लगा, तब जटायु पक्षी स्वाभीकी स्त्रीको हरती देख क्रोधरूप अग्निकर प्रज्वलित भया । उठकर अतिवेगते राबणपर पडा, तीक्षण नखनिकी अणी अर चूचसे रावणका उरस्थल रुधिर संयुक्त किया अर अपनी कठोर पाखनिकरि रावणके वस्त्र फाडे, रावणका सर्व शरीर खेदखिन्न किया, तब रावणने जानी यह सीताको छुडावेगा । झझट करेगा इसनेमें याका धनी आन पहूँचेगा, सो याहि मनोहर वस्तुका अवरोधक जान महाकोषकर हाथकी चपैट से मारा सो अति कठोर हाथकी पातसे पक्षी विह्वल होय पुकारता संता पृथिवी में पडा मूर्खाको प्राप्त भया तब रावण जनकसुताको पुष्पक विमान में थर अपने स्थान ले चला। श्रेणिक! यद्यपि रावण जाने है यह कार्य योग्य नाहीं । तथापि कामके वशीभूत हुआ सर्व विचार भूल गया। सीता महासनी आपको परपुरुष कर हरी जान रामके अनुराग से भीज रहा है चित्त जाका महा शोकवन्ती होय अरति रूप विलाप करती भई, तब रारण याहि निज भरतार विर्षे अनुरक्त जान रुदन करती देख कछू एक उदास हो विचारता भया जो यह निरन्तर रोवे है अर विरहकर व्याकुल है। पाने भरतारके गुण गावे है, अन्य पुरुषके संयोग का अभिलाष नाही. सो स्त्री अवध्य है ताते मैं मार न सकूअर कोऊ मेरी आज्ञा उलंघे तो ताहि मारूअर मैं सांधुनिके निकट ब्रत लिया हुता जो परस्त्री मोहि न इच्छे ताहि मैं न सेऊ सो मोहि व्रत दृढ राखना, याहि कोऊ उपायकर प्रसन्न करू उपाय किये प्रसन्न होयगी.जैसे क्रोधवन्त राजा शीघ्रही प्रसन्नन किया जाय तैसे हटवन्ती स्त्री भी वश न करी जाय, जो कछु वस्तु है सो यत्नसे सिद्ध होय है मनवांछित विद्या, परलोककी क्रिया अर मनभावनी स्त्री ये यत्नसे सिद्ध होंय, यह विचारकर सीताके प्रसन्न होनको रावण समय हेरै, कैसा है रावण मरण आया है निकट जाके ।
अथानन्तर श्रीरामने बाण रूप जलकी थारा कर पूर्ण जो रणमंडल तामैं प्रवेश किया सो लक्ष्मण देख कर कहता भया-हाय ! हाय, एते दूर आप क्यों आये-हे देव, जानकीको अकेली वनमें मेल आए । यह वन अनेक विग्रहका भरा है तब रामने कही मैं तेरा सिंहनाद सुन शीघ्र आया। तब लक्ष्मण कही आप भली न करी, अब शीघ्र जहां जानकी है वहां जावो, तब रामने जानी-वीर तो महाथीर है याहि शत्रुका भय नाहीं, तब याको कही तू परम उत्साह रूप है बलवान वैरीको जीत, ऐसा कहकर आप सीताकी उपजी है शंका जिनको सो चंचल चित्त होय जानकीकी तरफ चाले, क्षणमात्रमें आय देखें तो
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