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१३२.
पदा-पुराण
तौ भी रुधिरका रंगाविषै तत्पर वैरीके माथेमें हस्तका प्रहार करता भया, कोई एक रणधीर महाशूरवीर युद्धका अभिलापी पाशकर बैरीको बांधकर छोड़ देता भया, राकर उपजा है हर्ष जिनके कोई एक न्याय संग्रामविस्तार वैरी को व्यायुधरहित देखकर आप भी आयु डार खड़े होय रहे, कोई एक अन्त समय सन्यास धार नमोकार मंत्र का उच्चारणकर स्वर्ग प्राप्त भए, कोई एक योधा आशीविप सर्प समान भयङ्कर पड़ता २ भी प्रतिपक्षीको मारकर मरा, कोई एक अर्थ सिर छेदा गया उसे बायें हाथविषै दाव महापराक्रमी दौड़कर शत्रु का सिर फाड़ा, कोई एक सुभट पृथ्वी की बगल समान जो अपनी भुजा तिन ही कर युद्ध करते भये, कोई एक परम क्षत्रिय धर्मज्ञ शत्रुको मूति भया देख आप पवन झोल सचेत करते भये या भांति कायरोंको भयका उपजावनहारा घर यो आनन्द उपजायनहारा महासंग्राम प्रवरता । अनेक गज अनेक तुरंग अनेक योधा शस्त्रोंवर हते गये, अनेक रथ चूर्ण होगये, अनेक हाथियोंकी सूड़ कट गई, घोड़ावो पांच टूट गये पूछ कट गई पियादे काम आये गये रुधिर के प्रवाहकर सर्व दिशा रक्त हो गई। एता र भया सो रावण किंचितमात्र भी नगिना, रवि हैं कौतूहल जिसके ऐसे सुभट भावका धारक रावण सुमति नामा सारथीको कहता भया - हे सारथी ! इस इंद्रके सम्मुख रथ मलाय घर सामान्य मनुष्योंके मारकर कहा ! ये तृण समन सामान्य मनुष्य तिनपर मेरा शस्त्र न चलें, मेरा मन महा योधावक ग्रहणवि तत्पर है, यह क्षुद्र मनुष्य अभिमान से इन्द्र कहा है इसे आज मारू अथवा पकड़ यह विडम्बना करणहारा पाखण्ड कर रहा है सो तत्काल दूर करू | देखो इसकी ढीठता आपको इन्द्र कहा है अर कल्पनाकर लोकपाल थापे हैं और इन मनुष्योंने विद्याधरोंकी देव संज्ञा घरी हैं। देखो ! श्रल्पसी विभूति पाय मूढती गया है लोक हाम्यका भय नहीं जैसे नट स्वांग धरै तैसे स्वांग धरा हैं, दुर्बुद्धि आपको भूल गया । पिता के वीर्य माता के रुधिरकर मांस हाडमई शरीर माता के उदरसे उपजा वृथा आपको देवेंद्र गान है, विद्याके बलकर इसने यह कल्पना करी है जैसे काग आपको गरुड़ कहा है तैसे यह इन्द्र कहावे है यामांति जय रावणने कहा तब सुपति मारथीने रावणका रथ इन्द्रके सम्मुख किया रावणको देख इन्द्रके सब सुभट भागे रावण से युद्ध करने को कोई समर्थ नहीं रावण सर्वको दयालु दृष्टिकर कीट समान देखे रावण के सम्मुख यह इन्द्र ही टिका अर सब कृत्रिम देव इसका छत्र देख भाज गये जैसे चन्द्रमा के उदयसे अन्धकार जाता रहै, कैसा है रावण ? वैरियोंकर केला न जाय जैसे जलका प्रभाव ढाहोकर थांभा न जाय अर जैसे क्रोधसहित चित्तका वेग मिध्यादृष्टि तापसियोंकर थांभा न जाय तैसे सामन्तोंकर रावण थांभा न जाय । इन्द्र भी कैलाश पर्वत समान हाथी पर चढ़ा अनुपको धरै तरकशसे तीर काढ़ता रावणके सम्मुख आया, कानतक धनुषको रौंच रावणपर बाण चलाये जैसे पहाड़पर मेघ मोटी धारा श्रवते काट डारे - ऐसा युद्ध देख नारद: जाना कि यह रावण
तैसे रावणपर इन्द्रने बाणोंकी वर्षा करी । रावणने इन्द्रके बाण आवते र अपने वाणकर शरमण्डप किया सूर्यको किरण बाणों दृष्टि न माकाशमें नृत्य करता भया, कलह देख उपजें हैं दर्प जिसको । जब इन्द्रने
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