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________________ प्रथम पर्व कीर्तनसे अपना यश स्थिर कर हैं । जिसने सज्जनोंको आनंदकी देनहारी जो सन्पुरुषनकी रमणीक कथा उसका प्रारम्भ किया उसने दोनों लोकका फल लिया। जो कान सन्पुरुषनकी कथा श्रवण विष प्रवृत्ते हैं वे ही कान उत्ता हैं और जे कुकथाके सुननहारे कान हैं वे कान नाहीं वृथा आकार धरे हैं और जे मस्तक सत्यपुतानकी चेटाके वणन वर्ष घूझे हैं. ते ही मस्तक धन्य हैं और जे शेष मस्तक हैं वे थोथे नारियल समान जानने । सत्पुरुषनके यश कीर्तन विष प्रवृत्त जे होंठ ते हो श्रेष्ठ हैं और जे शेष होंठ है ते जोककी पीठ समान विफल जानने । जे पुरुष सत्पुरुषनकी कथाके प्रसंग विष अनुरागको प्राप्त भये उनहीका जन्म सफल है । और मुख वे ही है जो मुख्य पुरुषनकी कथाविष रत भये । शेष मुख दांतरूपी कीडानका भरा हुआ विल समान हैं और जे सत्पुरुषनकी कथाके वक्ता हैं अथवा श्रोता हैं सो ही पुरुष प्रशंसायोग्य है और शेष पुरुष चित्राम समान जानने । गुण और दोपनके संग्रहविषे जे उतम पुरुष है ते गुणन ही को ग्रहण करे हैं जैसे दुग्ध और पानीके मिलापविष हंस दुग्ध ही को ग्रहण करे है और गुण दोषन के मिलापविणे जे नीच पुरुष है ते दोषहीको ग्रहण करे हैं जैसे गजके मस्तकविष मोती मांस दोऊ हैं तिनविष काग मोतीको तज मांसहीको ग्रहण करे हैं। जो दुष्ट हैं ते निर्दोष रचनाको भी दोष.रूप देखे हैं जैसे उल्लू सूर्यके बिम्बको तमाल वृक्षके पत्र समान स्याम देखे है, जे दुर्जन हैं ते सरोबरमें जल आनेका जाली समान हैं जैसे जाली जलको तज तृण पत्रादि कटकादिक का ग्रहण करे है तैसे दुर्जन गुणको तज दोषनहीको धारे है इसलिये सज्जन और दुर्जनका ऐसा स्वभाव जानकर जो साधु पुरुष है वे अपने कल्याणनिमित्त सत्पुरुपनकी व था के प्रबंधविष ही प्रवृत्त हैं मत्पुरुषनकी कथाके श्राणसे मनुष्योंको परम सुख होय है । जे विवेकी पुरूष है उनको धर्म कथा पुण्यके उपजावनका कारण है सो जैसा कथन श्रीवर्द्धमान जिनेंद्रकी दिव्य ध्वनिमें खिरा विसका अर्थ गौतम गणधर धारते भये । और मौतमसे सुधर्माचार्य धारते भये ता पीछे जम्बूस्वामी प्रकाशते भये जम्बूस्वामीके पीछे पांच श्रुन केवली और भए वे भी उसी भांति कथन करते भये इसी प्रकार महा पुरुषनकी परम्पराकर कथन चला आया उसके अनुसार रविपणाचार्य व्याख्यान करते भये । यह सर्व रामचन्द्रका चरित्र सज्जन पुरुष सावधान होकर सुनो । यह चरित्र सिद्ध पदरूप मंदिरकी प्राप्तिका कारण है और सर्वप्रकार के सुखका देनहारा है और जे मनुष्य श्रीरामचन्द्रकों आदि दे जे महापुरुष तिनको चिंतन करें हैं वे अतिशयकर भावनके समूहकर नम्रीभूत होय प्रमोदकों धरे हैं तिनका अनेक जन्मोंका संचित किया जो पाप सो नाश को प्रास होय है और जे सम्पूर्ण पुराणका श्रवण करें तिनका पाप दूर अवश्य ही होय.यामें संदेह नाहीं, कैसा है पुराण ? चन्द्रमा समान उज्ज्वल है इसलिये जे विवेको चतुर पुरुष हैं ते इस चरित्रका सेवन करें। यह चरित्र बड़े परुषानवर सेवन या य है । इस ग्रन्थ विष ६ महा अधिकार हैं.तिन विष अवांतर अधिकार बहुत हैं । मूल अधिकारनिके नाम कहै हैं । प्रथम हो १ लोकस्थिति, बहुरि २-वंशनिकी उत्पत्ति, पीछे ३ वनविहार अर संग्राम, तथा ४ लवणांकुशकी उत्पत्ति, बहुरि ५ भवनिरूपणा अर.६ रामचन्द्रका निर्वाणः । श्रीवर्धमान देवाधिदेव सर्प. कथानके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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