SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्म-पुराण अथानन्तर किहकन्धपुरमें राजा सूर्यरज वानरवंशी तिनकी रणा चन्द्र लिनी अनेक गुणोंमें पूर्ण ताकै बाली नामा पुत्र भए । कैसे हैं काली ? सदा उपकारी शीलवान पंडित प्रवीण थीर लक्ष्मीवान शूरवीर ज्ञानी अनेक कला संयुक्त सम्पक दृष्टि महाबली राजनातिविष प्रवीण धीर्यवान दयाकर भीगा है चित्त जिनका, विद्याके समूह कर मण्डित कांतिवंत तेजवत हैं। ऐसे पुरुप संसारमें विरले ही हैं वह समस्त अढाई द्वीपोंके जिनन्दिरोंके दर्शन में उद्यमी है। जिनमंदिर अति उत्कृष्ट प्रभासे मंडित हैं बाली तीनों काल अति श्रेष्ठ भक्तियुक्त संशयरहित श्रद्धावंत जम्बूद्वीपके सर्व चैत्यालयोंके दर्शन कर आवै महा पराक्रमी शत्रुपक्षका जीतनेहारा नगर के लोगोंक नेत्ररूपी कुमुदके प्रफुल्लित करनेको चंद्रमा समान जिसको किसोकी शंका नहीं, किहकंथपुरमें देवोंकी न्याई रमै ! हिकंधपुर महारमणीक नाना प्रकारके रत्नमयी मंदिरोंसे मंडित गज तुरंग रथादिसे पूर्ण जहां नाना प्रकारका व्यापार है अर अनेक सुन्दर हाटोंकी पंक्तियोंसे युक्त है जहां जैप स्वर्गविष इन्द्र रमै तैसे रमै है । अनुक्रमसे जिसके छोटा भाई सुग्रीव भया वह भी महा धार वीर मनोज्ञ रूप कर युक्त महा नीतिमान विनयवान है । ये दोनों ही वीर कुलके आभूषण होते भए । जिनका प्राभूपण बड़ोंका विनय है। सुग्रीवके पीछे श्रीप्रभा बहिन भई जो साक्षात् लक्ष्मी, रूपमें अतुल्य है पर रिहकंधपुरमें सूर्यरजका छोटा भाई रक्षरज उसकी राणी हरिकांता उके पुत्र नल अर नील होते भए सुजनोंको आनंदके उपजानेहारे महासामंत रिपुकी शंकारसित मानों कि कंध पुरके मंडन ही हैं । इन दोनों भाइयोंके दो दो पुत्र महागुणवंत भए । राजा सूर्यरज आने पुत्रोंको यौवनवन देख मर्यादाके पालनहारे जान श्राप विषयोंको विष मिश्रित अन्न समान जान संसार विरक्त भए । राजा सूरज महाज्ञानवान हैं वालीको पृथ्वीके पालने निमित्त राज दिया अर सुग्रीव को युवराजपद दिया अपने स्वजन परजन समान जाने पर यह चतुरगतिरूप जगत महा दुःखकर पीडित देख विहतमोह नामा मुनिके शिष्य भए जैसा भगवानने भाषा तैसा चास्त्रि धारा । मुनि सूरजको शरीरसे ममत्व नहीं है आकाश सारिखा निर्मल अंतःकरण है समस्त पग्रिरहित पवनको नाई पृथ्वीविष विहार करते भए । विषय कपायरहित मुक्ति के अभिलाषी भए। __ कथानन्तर बालीके ध्रु वा नामा स्त्री मा पतिव्रता गुणोंके उदयसे सैकड़ों राणियोंमें मुख्य उस सहित ऐश्वर्यको धर राजा बाली बानरवंशियोंके मुकुट विद्याधरोंके अधिपति सुन्दर चरित्रवान देवोंके ऐसे सुख भोगते हुए किहकंवपुरमें राज करें। रावण की बदिन चन्द्रनखा जिसके सर्वे गात मनोहर राजा मेघभका पुत्र खरदूषणने जिस दिनसे इसको देखा उस दिनसे कामवाणकर पीडिा भया याको हरा चाहै। सोएकदिन रावण राजा प्रदर राणी पावली उनकी पुत्री तनूदरी उसके अर्थ एक दिन रावण गए सो खरदूषणने लंका रावण विना खाली देख चिन्तारहित होप चन्द्रनखा हरी । कैसा है खरदषण ? अनेक विद्याका धारक मायाचार में प्रवीण है बुद्धि जाकी, दोनों भाई कुम्भकरण अर विभीषण बड़े शरीर हैं परन्तु छिद्र पाकर मायाचारसे यह कन्याको हर ले गया तब वे क्या करें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy