________________
प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध-सन्दर्भ
35
38. सन्तोष कुमारी
कालिदास के नाटकों की प्राकृत भाषा का अध्ययन कुरूक्षेत्र, 1970, अप्रकाशित
39. सिंह, रामनाथ
कर्पूरमंजरी एवं श्रृंगारमंजरी का तुलनात्मक अध्ययन बिहार, 1985, प्रकाशित नि०- डा० शिव कुमार यादव
प्रा०, सं० वि०. साहपुर पटौदी कॉलेज, साहपुर (बिहार) 40. सूरिदेव, श्रीरंजन (पाठक राजकुमार)
वसुदेवहिण्डी का आलोचनात्मक अध्ययन बिहार, 1982, प्रकाशित पी० एन० सिन्हा कालोनी, भिखना पहाड़ी, पटना (बिहार) 'वसुदेवहिण्डी- भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा' नाम से प्रकाशित प्रकाo- वैशाली, प्रथम : 1993/250.00/16 + 632 अ०- (1) प्राकृत कथा साहित्य में वसुदेवहिण्डी का स्थान, (2) वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप, (3) वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथायें, (4) वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्यायें (5) वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोक जीवन, (6) वसुदेवहिण्डी में भाषिक और साहित्यिक तत्त्व, (7) उपसंहार, परिशिष्ट- कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द, वसुदेव की अट्ठाईस पत्नियों की विवरणी, धम्मल की बत्तीस पत्नियों की विवरणी, वसुदेवहिण्डी के विशिष्ट चार्चिक स्थल ।
41.
अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य APABHRANSH LANGUAGE AND LITERATURE अपरबलराम करकंडचरिऊ और मध्ययुगीन हिन्दी के प्रबन्ध काव्य वाराणसी, .........., प्रकाशित नि०-- डा० भोलाशंकर व्यास प्रका०- संजय प्रकाशन, बुलानाला, वाराणसी (उ०प्र०) प्रथम : 1978/50.00/16 + 362 अ०- (1) विषय प्रवेश, (2) अपभ्रंश प्रबन्धकाव्यों को परम्परा से प्राप्त दाय (3) अपभ्रंश चरित काव्यों में करकडंचरिऊ का स्थान (4) करकंडचरिऊ का कथाशिल्प, (5) मध्ययुगीन हिन्दी प्रबन्धकाव्य और करकंडचरिऊ तुलनात्मक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org