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________________ महापुराण [४०. ६. ५.हरिआसणि पहु वइसारियड इंदेण मंतु उच्चारियउ। दिण्णउं दब्भासणु णिहयमलु दसदिसु परिचित्तु सकुसुमजलु । दसदिसु सुधूवु उच्चाइयउ। दसदिसु चरुभाउ णिवेइयउ। दसदिसु थिये सुरवर कलसकर दसदिसु वित्थरिय मुइंगसर । खीरोयखीरधाराधरहिं सिंचिउ जिणिंदु सयलामरहिं । हारावलितडिफुरिएहिं किह गजंतिहिं मेहहि मेरु जिह । घत्ता-मंगलु गायतिहिं पुरउ णडंतिहिं दावियबहुरसभीवहिं । णाणाविहभासहिं थोत्तसहासहिं जगगुरु संथुउ देवहिं ॥६।। हरिणा परमेट्ठि पसाहियउ सुइथुइगिराहिं आराहियउ । सिहिणा तहु दीवउ बोहियउ जउं जंपइ हां पई साहियउ। रिंछाहिउ रिछहु ओयरिउ विणएण णएण जि संचरिउ । जडबईणा जडमणु परिहरिउ परमप्पउ णियहियवइ धरिउ । वाएण भडारउ विज्जियउ रयणेसें रयणहिं पुजियउ । इसाणे ईसु भणिवि णविउ 'सुसुहासूएं सुहाहि हविउ । सूरेण वि मोहंधारहरु सूरु जि णिज्झाइउ परमपरु। सिंहासनपर बैठाया। इन्द्रने मन्त्रका उच्चारण किया। दर्भासन रखा, और दसों दिशाओं में मलका नाश करनेवाला कुसुमोंसे सुवासित जल फेंका। दसों दिशाओंमें धूप उठा ली गयो, दसों दिशाओंमें चरुभाग निवेदित किया गया। हाथमें कलश लिये हुए देव दसों दिशाओंमें खड़े हो गये। मृदंगका स्वर दसों दिशाओं में फैल गया। क्षीरसमुद्रके क्षीरकी धाराओंको धारण करनेवाले समस्त देवोंने जिनेन्द्रका इस प्रकार अभिषेक किया, जैसे हारावलोके समान बिजलीसे भास्वर गरजते हुए मेघों द्वारा सुमेरु पर्वतका अभिषेक किया गया हो। घत्ता-मंगलगान करते हुए, सामने नृत्य करते हुए, अनेक रसभावोंका प्रदर्शन करते हुए, देवोंने अनेक प्रकारको भाषाओंवाले हजारों स्तोत्रोंसे विश्वगुरुको स्तुति की ।।६।। ७ देवेन्द्रने परमेष्ठोको अलंकृत किया। पवित्र स्तुतियोंको वाणोसे उनको आराधना की। आगके द्वारा उनका दीप प्रज्वलित किया गया। यम कहता है कि मैं तुम्हारे द्वारा जीत लिया गया हूँ। नैऋत्यदेव अपने रोछके वाहनसे उतर पड़ा। वह विनय और नयके साथ चला । जड़वादी ( वरुण) ने जड़बुद्धि छोड़ दी। उसने परमात्माको अपने हृदयमें धारण कर लिया। वायु ने आदरणीय पर पंखा झला, रत्नेशने रत्नोंसे उनकी पूजा की। ईशानने ईश कहकर नमन किया। चन्द्रमाने अमृतसे स्नान करवाया। सूर्यने भो मोहान्धकारका नाश करनेवाले शूरवीर जिनका ३. P सुकुसुम । ४. A दसदिस सुधूम; P दसदिसु सुधूमुच्वा। ५. AP सुरवर थिय । ६. A "भाविहिं; P* मावेहि । ७. A णाणाविहभासिहि: Pणाणाविहिभासेहि । ७. १. P सइथुई। २. AP जडवयणा। ३. A ससुहासूई; P सुसुहासूई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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