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________________ ४० २५ १० "आसमि गुणिद्दे धत्ता - अरितरुसिहि राउ महापुराण ताराहारावलिपविमलेहि कलहोयकलसकविलियकरेहि तपाय धोय सलिलेण सित्त हिमवंतपोमसरवरपसूय मंदार जाइसिंदूर सुपरमय रंदा बहि आमोयमिलियचलेमहुलिहेहि थोत्तेहि जईसरु धरियजोउ उप्पाइवि केवलु तिजगचक्खु घत्ता -- सो मुणिवरु अजरामरु हूयड खणि असैरीरिउ ॥ भरत्थहि णिव सत्थहि पुष्पदंतु जयकारिउ || १९|| भईरहि हिसारंभु मुएप्पिणु ॥ सरहंगहि तडि थि गंगहि जिणपावज्ज लपविणु ॥ १८ ॥ १२ १९ [ ३९.१८. २४ सतुसारखीरसायरजलेहिं । तहु पयजुयलउ सिचिड सुरेहिं । तहिं हूई सुरवरसरि पवित्त । अज्जु वि Hors तित्थभूय । अरविंदकंदकणियार एहिं । चिवि णवकुसुमकरंबएहिं । ife दण्णासाहेहि । वंदेवि देव गय सग्गलोउ । संपत्त भईरहि परममोक्खु । इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फर्यंतविरइप महाभव्वभरहाणुमण्णिए महाकवे सयरणिव्वाणगमणं णाम एक हूणचाळीसमो परिच्छेओ समत्तो ॥ ३२॥ ॥ सेयरपरियं समत्तं ॥ पुत्र वरदत्त के लिए विजयरूपी लक्ष्मीकी सहेली धरती देकर गुणवान् गुप्तमुनिसे कामके मदसे रहित यही व्रत ग्रहण करता हूँ । घत्ता - अरिरूपी वृक्षके लिए आगके समान राजा भगीरथ हिंसा और आरम्भको छोड़कर तथा जिनदीक्षा ग्रहण कर चक्रवाकोंसे युक्त गंगानदी के तटपर स्थित हो गये ||१८|| १९ तारोंकी हारावलियोंके समान स्वच्छ, तुषारकणों सहित, क्षीरसागरके जलोंसे स्वर्णकलशसे युक्त हाथोंसे देवोंने उनके पदयुगलका अभिषेक किया। उनके चरणोंके धोये गये जलसे सींची गयी देवनदी गंगा उस समय पवित्र हो गयी । हिमवन्त सरोवरसे निकलनेवाली गंगानदीको लोग आज भी तीर्थस्वरूप मानते हैं । मन्दार, जुही, सिन्दुवार, अरविन्द, कुन्द, कनेर पुष्पोंके सुप्रचुर मकरन्दोंसे लाल नव कुसुम समूहोंसे अर्चा कर, तथा जिनमें आमोदसे चंचल मधुकर मिले हुए हैं ऐसी नासिकाको सुख देनेवाले गन्धों और स्तोत्रोंसे योगधारी योगीश्वरकी वन्दना कर देव स्वर्गलोक चले गये । त्रिलोकनयन केवलज्ञान उत्पन्न कर भगीरथ परममोक्षको प्राप्त हुए । Jain Education International घत्ता - वह मुनिवर एक क्षणमें अजर-अमर और अशरीरी हो गये । भरतक्षेत्रवासी राजसमूहोंने पुष्पदन्तके समान उनका जयजयकार किया ॥१९॥ इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका सगरनिर्वाणगमन नामका उनतालीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ३९॥ १०. A P असमे । ११. A P गोत्तयमु गेहें । १२. A P जिणपव्वज्ज । १९. १. A महुरेहि; A महुयरेहि । २. A असरीरउ । ३. A Pomit सयरचरियं समत्तं ... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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