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________________ ४८६ महापुराण [६७.१३.१ ससहरधवलहरे धणरिद्धे इह भरहे साकेयपसिद्धे। मंदरधीरो वीरो राया पुत्ता रामविरामा जाया। एए किर दुम्मइपइरिका पिसुणमंतिवयणेण विमुक्का। लग्गा ते ण हु पिउणो चित्ते भाउ वि णिहियउ जुवराइत्ते । लर्खियतच्चे रक्खियजीवे गुरुणो सिरिसिवगुत्तसमीवे । धम्मणाहतित्थे हयमारा ते पावइया रायकुमारा। णो समियं णियचित्तं कुद्धं अणुजाएण णियाणं बद्ध। जइ वयवेल्लिहलं पावामो तो तं खलमंतिं णिहणामो। एम भरंतो णिग्गयप्राणो अणसणेण जाओ गिव्वाणो। पढमे कप्पे पिहलँविमाणे जेट्ठो वि हु तत्थेय विमाणे । पिसुणेमहंतो ता संसारे अणुहविऊणं दुक्खपयारे। उत्तरसढीमंदिरणामे णयरे कामिणिकामियकामे । जाओ धरणीवइ खयरिंदो बलिबलणासो णाम'बंलिंदो । घत्ता-चंडा राइणो असिणा दंडिया ॥ तेण तिखंडिया मेइणि मंडिया ॥१३॥ १३ इस भारतवर्ष में धनसे समृद्ध चन्द्रमाके समान धवल गृहवाले अयोध्या नगरमें मन्दराचलके समान धीर वीर नामका राजा था। उसके राम-विराम नामके पुत्र थे। वे दुर्मतिसे प्रचुर थे। दुष्ट मन्त्रीके कहने में आकर आजाद हो गये। वे दोनों पिताके चित्तको अच्छे नहीं लगे, इसलिए उसने छोटे भाईको युवराजपदपर स्थापित कर दिया। कामदेवको नष्ट करनेवाले वे राजकुमार, धर्मनाथके तीर्थकालमें जिन्होंने तत्त्वोंको जान लिया है, जीवोंकी रक्षा की है ऐसे श्री शिवगुप्त मनिके पास प्रव्रजित हो गये। छोटे भाई (विराम) ने अपने क्रद्ध चित्तको शान्त नहीं किया और निदान बांध लिया कि यदि मैं व्रतरूपी लताका फल प्राप्त करता हूँ तो मैं उस दुष्ट मन्त्रीको मारूंगा। इस प्रकार स्मरण करता हुआ वह अनशनसे मृत्युको प्राप्त हुआ और प्रथम स्वर्गके विशाल विमानमें देव हुआ। बड़ा भाई भी वहीं उत्पन्न हुआ। वह दुष्ट मन्त्री भी संसारमें तरहतरहके दुःखोंका अनुभव कर विजया पर्वतको उत्तर श्रेणी में जिसमें कामिनियोंके द्वारा काम चाहा जाता है, ऐसे मन्दरपुर नगरमें बलवानोंके बलका नाश करनेवाला बलीन्द्र नामका विद्याधर राजा हुआ। घत्ता-प्रचण्ड राजाओंको उसने तलवारसे दण्डित किया। उसने तीन खण्ड धरतीको अलंकृत किया ।।१३।। १३.१.P साकेयए पसिद्धे । २. A रामविराम विजाया। ३. A भाऊ णिहिओ। ४. A लक्खियचित्त । ५. A तो। ६. AP पाणो । ७. AP विवाणे । ८. P तत्थेअ समाणे; K records: तत्थेष समाणे इति पाठे पूजासहिते । ९. P'पिसुणु । १० A परिंदो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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