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________________ -६७. १२. १६ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित १२ दिण्णा ताओ सुकेप्स पुत्ताण । रज्जं करतेण भूचक्कवालेण । दिट्ठो घणो खे पणट्टो खणद्वेण । दुब्भंतिणा मंतिणा जंपियं ताम । जीवा ण बज्झति पुण्णेण पावेण । सो उत्त भो वुड्ढ णिण्णाय । णो जम्मु णो कम्मु करणव्वाणु | हे णिउत्ताण विष्णाणजुत्ताण णिच्छिमाणेण दीहेण कालेण देवेण सव्वावणीरिद्धिरिद्वेण कम्मारिचारिततत्ती कया जाम जायंति भूयाण संजोयभावेण दिखाइ भिक्खाइ किं होउ हे राय जंत्थि जो तस्स उत्पत्ति संताणु कूराण कउलाण कंकालंचिंधाण सुते किं मज्झु किं बंधुणेहेण एवं पवोत्तूण तच्चाई णाऊण सूरिरस तिव्वं समाहीइ गुत्तस्स सोमो व्व सोमेणं णिम्मुकपोमेण 'सड्ढं इसी जायया णिक्कसाएण 'खीणा तवेणं खरं णिक्कलत्तेण कीलालमत्ताण कंतारयंधाण | सामि सोक्खं धुवं एण देहेण । पुत्तस्स भूमिं असेसं पि दाऊण । काउं तवं पायमूले सुजुत्तस्स । राया सुकेॐ वि अण्णे वि पोमेण । णिल्लोहणिम्मोहिणा णिव्विसारण । मोक्खं गया संठिया णिक्कलत्तेण । Jain Education International घत्ता - एत्थइ तित्थइ जे हयवइरिणो || जाया भाणिमो ते हरिसीरिणो || १२|| ४८५ ५ For Private & Personal Use Only १० १२ आठों राजा सुकेतुके स्नेहसे परिपूर्ण विज्ञानसे युक्त पुत्रोंको दी गयीं। लम्बा समय निकल जानेके बाद राज्य करते हुए भूपाल चक्रवर्ती समस्त धराऋद्धियों से समृद्ध देवने आकाशमें आधे ही पल में बादलको नष्ट होते हुए देखा। जब उसने कर्मोंके शत्रु जिनके चरित्रकी चिन्ता की तो दुर्भ्रान्त मन्त्रीने कहा - " प्राणी संयोगभावसे जन्म लेते हैं, जीव पुण्य या पापसे बन्धनको प्राप्त नहीं होते । इसलिए हे राजन्, दोक्षा और भिक्षासे क्या होता है ?" तब राजाने कहा - "हे न्यायहीन वृद्ध मन्त्री, जो चीज नहीं है उसकी उत्पत्ति या परम्परा नहीं हो सकती है । जब जन्म नहीं है, कर्म नहीं है, तो निर्वाण क्या है ? कंकाल चिह्नवाले क्रूर कौल मद्यसे मस्त कान्तारतिमें अन्धे चार्वाकों के सिद्धान्तसे मुझे क्या, बन्धुस्नेहसे क्या ? इस शरीर से में शाश्वत सुखकी सिद्धि करूंगा ?” यह कहकर, तत्त्वोंको जानकर, पुत्रको समस्त धरती देकर सुयुक्त समाधिगुप्त मुनिके पादमूल में तीव्र तप कर लक्ष्मीसे मुक्त चन्द्रमाके समान सौम्य राजा पद्मके साथ राजा सुकेतु तथा दूसरे राजा मुनि हो गये । निष्कषाय, निर्लोभ, निर्मोह और निर्विषाद तथा स्त्रीशून्य तपसे क्षीण वे मोक्ष गये और वहां अशरीरभावसे स्थित हो गये । घत्ता - इसी तीथंमें जो शत्रुओंको मारनेवाले बलभद्र और नारायण हुए उनका कथन करता हूँ ॥ १२ ॥ १५ १२. १. A दिण्णाउ ता ताउ । २. AP सुके उस्स । ३ A पिच्छिजजमाणेण । ४. A खं पणट्टो । ५. A अस्थि । ६. P धम्मणिव्वाणु | ७. A कंकालगिद्धाण | ८. AP साहम्मि । ९. P सोमो ण । १०. A सुकेऊविइण्णेण । ११. A सुद्धं इसी जायओ; P सक्कं इसी जायया । १२. A खीणं तवेणं । www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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