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________________ -६५. १४. २ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ४५५ १३ ता पभणइ सुरु सम्माइटिउ जो तुम्हारइ णि?इ णिट्ठिउ । सो दावहि तावसु जो गयमलु आउ आउ वच्चहुं धरणीयलु । सुहिणा उत्तउ मयणणिवारउ पेच्छेहि रिसि जमयग्गिभडारउ । ते बेण्णि वि जैण गुणगणसिक्खहि सजण लग्गा धम्मपरिक्खहि । गय कलविंकमिहुणु होएप्पिणु थिउ मुणिमीसियवासु रएप्पिणु । कणु चुणंति कीलंति भमंति वि तावर्समासुरवासि रसंति वि । अण्णहि दिणि जंपइ चिडउल्लउ कंति कति हउं भर्मणपियल्लउ । गच्छमि लग्गउ एत्थु जि अच्छहि कल्लइ आयहु महु मुँहुं पेच्छहि । ता चिडउल्लियाइ पडिबोल्लित हियवउ णाह महारउ संल्लिउ । पइं विणु एकु वि दिवहु ण जीवमि अज्ज वियालइ जमपुरि पावमि । करेंहि सवह जइ परइ ण आवहि तो मई णिच्छउँ मुइय विहावहि । घत्ता-भणइ पक्खि हलि पक्खिणि परइ ण एमि जइ । । हउं एयहु जमयग्गिहि दुक्किउ लेमि' तइ ॥१३॥ तं णिसुणिवि सयबिंदुहि णंदणु अरि अरि पिसुण पक्खि किं बुक्कउं पभणइ रोसजलणजालियतणु । महुँ गुणवंतहु किं किर दुक्किउं । तब वह सम्यग्दृष्टि देव कहता है कि जो तुम्हारी निष्ठा ( साधना ) में लीन है, और जो गतमल है, ऐसे तापसको बताओ। आओ-आओ, धरणीतलको चले। सुधिदेवने कहा-कामका निवारण करनेवाले आदरणीय जमदग्नि मुनिको देखिए। वे दोनों ही देव, जिसमें गुणगणकी शिक्षा है, ऐसी धर्म परीक्षामें लग गये। वे दोनों चटक पक्षीका जोड़ा बनकर मुनिकी दाढ़ीमें घोंसला बनाकर रहने लगे। वे दोनों कण चुगते क्रीड़ा करते और भ्रमण करते । तापसके दाढ़ीरूपी घरमें रहनेवाले वे दोनों शब्द भी करते। एक दूसरे दिन चिड़ा कहता है-'हे प्रिये, प्रिये, मैं भ्रमण-प्रिय हूँ। मैं जाता हूँ। तुम यहां लगकर रहो। कल आये हुए मेरा मुँह तुम देखोगी। तब चिड़ियाने उत्तर दिया कि हे स्वामी, मेरा हृदय पीड़ित है, तुम्हारे बिना मैं एक दिन जीवित नहीं रह सकती, मैं आज ही शाम यमपुर चली जाऊंगी। तुम शपथ लो। यदि तुम कल तक नहीं आओगे तो तुम मुझे निश्चित रूपसे मरा हुआ देखोगे ? पत्ता-चिड़ा कहता है-“हे चिड़िया रानी, (पक्षिणी ) यदि मैं कल तक लौटकर नहीं आया तो मैं इस जमदग्निके पापको ग्रहण करूँ" ॥१३॥ १४ यह सुनकर क्रोधको ज्वालासे जिसका शरीर जल रहा है, ऐसा शतबिन्दुका पुत्र बोला, १३.१. AP वच्चहं । २. P पच्छहि । ३. A जिण । ४. A तावसभासुर। ५. A रमंति। ६. A भवण: P भणमि । ७. महं । ८. A डोल्लिउ । ९. A करहु । १०. A णिच्चउ । ११. A लेवि । १४.१. A पक्खि पिसुण । २. AP बुक्किउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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