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________________ ४५१ -६५. ९.४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सोलहसयई परागमहारिहिं सट्ठिसहासई संजमणारिहिं । सावयाहं पुणु लक्खु भणिज्जइ सुण्णचउक्क छडग्गइ दिज्जइ । लक्खई तिण्णि गेहधम्मत्थहं महिलहं मंगलवविहत्थहं । संखावज्जिएहिं गिवाणहिं खगेमृगेहिं पुत्वुत्तयमाणहिं । एक्कवीससहसई ध्रर्दू माणइं. वरिसह सोलहवरिसविहीणई। भूयलि भमिवि भव्व पहि लाइवि मासमेत्तु णियजीविउ जोइवि । सहुँ रिसिसहसे थिउ संमेयइ मुइवि दिवतणु पडिमाजोयइ। फग्गुणपुरिममासि कर्सणंतिमि दियहि चंदि कयरेवइसंगमि । पुव्वणिसागमि णिक्कलु जायउ गउ तहिं जिणु जहिं गयउ ण आयउ । घत्ता-चउविहदेवणिकायहिं जयजयकारियउ॥ ___ अरु अग्गिदकुमारहिं तहिं साहुक्कारियउ ।। ८॥ अरु अरविंदगब्भकयचारउ अरु अरुहंतु अणंगवियारउ । अरु अरमाणिहीहिं णउ रुञ्चइ अरु अरहिल्ल तच्चु जंगि सुच्चइ । अरु अरसिल्लु अगंधु अरूअउ अरु अरामु अविरामउ हूयउ । अरु अरईरईहिं णउ छिप्पइ अरु अरोसु किह पावें लिप्पइ । चर्या धारण करनेवाले विक्रियाऋद्धिके धारक चार हजार तीन सौ थे। परमागमको धारण करनेवाले श्रेष्ठ वादी मुनि सोलह सौ थे। संयम धारण करनेवाली आर्यिकाएं साठ हजार थीं। श्रावक एक लाख साठ हजार थे। गृहस्थ धर्ममें स्थित तथा हाथमें मंगल द्रव्य लिये हुए तीन लाख श्राविकाएं थीं। देवता संख्या-विहीन थे, खग और मृग पूर्वोक्त मानवाले ( संख्यात ) थे। सोलह वर्ष कम इक्कीस हजार वर्ष पर्यन्त भूतलपर परिभ्रमण कर, भव्योंको पथपर लाकर, अपना जीवन एक माहका देखकर वह एक हजार मुनियोंके साथ सम्मेद शिखरपर स्थित हो गये एवं शरीरको (मोहको) छोडकर प्रतिमायोगमें स्थित हो गये। फागन माहके कृष्ण पक्षको दिन रेवती नक्षत्रमें निशाके पूर्वभागमें वह निष्पाप हो गये, जिन वहां चले गये कि जहां गया हुआ वापस नहीं आता। घत्ता-चार प्रकारके निकायोंके देवोंने जय-जयकार किया। तब अग्नीन्द्रकुमार देवोंने अरह तीर्थंकरका दाह संस्कार किया ॥८॥ अरु-अरविन्दके गर्भमें उत्पन्न शोभा है, अरु-कामको विदारण करनेवाले जिन हैं, अरु-दरिद्रोंके लिए नहीं रुचते, अरु-अहत्का तत्त्व संसारमें स्पष्ट सूचित होता है। अरुरसरहित, अगन्ध और अरूप है । अरु-रति-अरतिके द्वारा स्पृश्य नहीं हैं। अरु-क्रोधसे रहित २. AP°मिगेहि। ३. AP पुवुत्तपमाणहिं । ४. A जुयमाणइ । ५. A°वरिसई हीणई। ६. T चोइवि। ७. AP कलेवरु। ८. A कसणतमि । ९. AP सक्कारियउ। ९. १. AP जणि । २. A किम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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