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________________ संधि ६३ 'छम्मासई आउससेसई थियई जाम अहमिंदहु ।। ता रम्मइ तहिं सोहम्मइ जाय चिंत तियसिंदहु ॥ ध्रुवकं ।। जिणवरण्हवणण्हवियगिरिमंदरु कुंजरकरताडियसीयलजलि णवखरदंडसंडमंडियसरि सीमारोमगामरमणीयइ गंधसालिकणसुरहियपरिमलि दिव्वुजाणविडविणिवडियफलि हथिणयरु तहिं मंडलि छज्जइ सग्गे सरिसउ अप्पर मण्णइ धणयह अक्खइ देउ पुरंदरु । सिसिरकिरणविलसियेणीलुप्पलि। दसदिसु गुमुगुमंतमयमहुयरि । दीणाणाहदिण्णतवणीयइ। कीरकुररकलहंसीकलयलि । जंबूदीवि भरहि कुंरुजंगलि । तूरहं सह णं गलगज्जइ। घरसिहरहिं हरइ व तिजगुण्णइ । सन्धि ६३ जब अहमेन्द्रकी छह माह आयु शेष रह गयी, तो सौधर्म स्वर्गमें इन्द्रको चिन्ता उत्पन्न हो गयी। जिनवरके स्नानमें मन्दराचल पर्वतको स्नान करानेवाला इन्द्र कुबेरसे कहता है-इस जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें कुरुजांगल देश है, जिसमें हाथियोंसे प्रताड़ित शीतल जल है। जिसमें नील-कमल शिशिर किरणोंसे विकसित है, नदियां नवपद्मोंसे मण्डित हैं, दसों दिशाओं में मधुकर गुंजन करते हैं, सीमोद्यानों और ग्रामोंसे जो रमणीय है, जहां दीन और अनाथोंको सोना दिया जाता है, जहां सुगन्धित धान्यके कणोंसे सुरभित परिमल है, जिसमें कोर, कुरल और कलहंसोंका सुन्दर कलकल शब्द हो रहा है। ऐसे उस मण्डल में हस्तिनापुर नगर शोभित है जो मानो तूर्योकी ध्वनियोंसे गरज रहा है। वह अपने आपको स्वर्गके समान मानता है। अपने घरोंके शिखरोंसें All Mss. have, at the beginning of this samdhi, the following stanza: बन्धः सौजन्यवार्धेः कविखलधिषणाध्वान्तविध्वंसभानुः प्रौढालंकारसारामलतनुविभवा भारती यस्य नित्यम् । वक्त्राम्भोजानुरागक्रमनिहितपदा राजहंसीव भाति प्रोद्यद्गम्भीरभावा स जयति भरते धार्मिके पुष्पदन्तः ॥१॥ AP read बन्धुः in the first line. for बन्धः , but K has a gloss सेतुः on it. P reads भावः for भावा in the third line.. १. १. AP वियसिय । २. A सीमागामराम । ३. AP कणपसरियपरिमलि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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