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________________ ४०२ महापुराण [ ६१. २०.५ भंजिवि दुम्महु कंदप्पदप्पु संणासें गई ईसाणकप्पु । जंबूदीवंतरि कच्छदेसि वेयड्ढइ उत्तरसेढिवासि । पुरि कणयतिलइ णं पुण्णयंदु . णामें महिंदविक्कमु खगिंदु । तहु पणइणि णामें णीलवेय सुरु मेल्लिवि सुरतणु अमियतेय । चिरु वणि सुदत्तु जो दुक्खरीणु सो तहि सुउ जायउ अजियसेणु । इंदीवरदलसंकासणेत्तु जे हित्तउ वणितणयहु कलत्त । सीमंकरसूरिहि णविवि पाय तउ चरिवि घोरु चूरिवि कसाय । णियदुक्किउ णिदिवि णायणेउ गउ मोक्खहु सो नृवं णलिणकेउ । घत्ता-पीइंकरि सुव्वयसंजइहि पासि मुएप्पिणु घरणियलु ॥ चंदायणु चरिवि पसण्णमइ मय पक्खालिवि पावमल ॥२०॥ २१ ईसाणि देवि तित्थाउ आय इहु अजियसेणु चिरवरु दुलंघु इय णिसणिवि कण्णइ पुत्वजम्मु । संतिमइ सुगंथवियक्खणाहि देवत्तु लहे प्पिणु बीयसग्गि। इजो णरजम्मि ताउ संतिमइ तुहारिय धीय जाय । विजउ साहं तिहि करइ विग्घु । खेमंकरणाहहु पासि धम्मु । हूई सीसिणिय सलक्खणाहि । संचरइ जाम गयेणयलमग्गि। सो जिणवरु जायउ वाउवेउ। वास है, ऐसे सुव्रतके निकट मुनि हो गया । दुर्मद काममदका क्षय कर संन्याससे वह ईशान स्वर्गमें गया। जम्बद्वीपके अन्तर्गत कच्छ देशमें विजयाध पर्वतको उत्तर श्रेणीमें स्थित कनकतिलक तिलक) का विद्याधर राजा महेन्द्रविक्रम था, जो मानो पूर्णचन्द्र था। उसकी प्रणयिनी नीलवेगा थी। अमिततेज देव जो पहले दुखसे क्षीण सुदत्त नामका वणिक् था, वह उसका अजितसेन नामका पुत्र हुआ और जिसने कमलके समान नेत्रोंवाली वणिकपुत्रकी पत्नीका अपहरण किया था। सीमन्धर स्वामीके चरणों में प्रणाम कर तथा घोर तपश्चरण कर, कषायोंको चूर-चूर कर, अपने पापोंकी निन्दा कर तत्त्वोंको जाननेवाला वह राजा नलिनकेतु मोक्ष गया। घत्ता-प्रसन्नमति और प्रोतंकरी भी सुव्रता आर्यिकाके पास धरिणीतलको छोड़कर चान्द्रायण तपकर तथा पापमलका प्रक्षालन कर मृत्युको प्राप्त हुई ॥२०॥ २१ ईशान स्वर्गकी देवी प्रीतंकरी (प्रीतंकरा ) वहाँसे आयी और शान्तिमती नामसे तुम्हारी पुत्री हुई। यह अजितसेन पूर्वजन्मका दुर्लभ वर है जो विद्या सिद्ध करती हुई इसे विघ्न कर रहा है। इस प्रकार अपना पूर्वजन्म सुनकर क्षेमंकरस्वामीके निकट कन्या शान्तिमती सुशास्त्रोंमें पारंगत आर्यिका सुलक्षणा की शिष्य हो गयी। दूसरे स्वर्गमें उत्पन्न होकर जब वह आकाशतलमें विचरण कर रही थी तो वह देखती है कि जो मेरे पूर्वजन्मके पिता वह वायुवेग जिनवर हो ३. AP हुउ । ४. A पुण्णिविंदु; P पुण्णियंदु। ५. A अमियसेणु । ६. A नृउ; P णिउ । ७. A पोइंकर । ८. AP मुय । ९. A पायमल । - २१. १. AP तुहारी । २. AP इय णिसुणेप्पिणु अप्पणउ जम्मु । ३. AP गयणमग्गमग्गि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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