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________________ ३९८ १० ५ to हिंदिणि गउ णंदणगिरिदु हय कंठभाई णामें सुकंठु जाय भीमासुरु सरिवि वेरु उवसग्गहु ण चलइ किं पि जाम रिसि साहिवि आराहण अमंदु इतर सुरदिसि विदेहि तहु कणयचित्त णामेण देवि जोया हियमाणिणिहिययसार सिरिसेणहि सुउ सहसा उद्देण णियसंति णामु सुरणाहमहिउ जवच्छता दिवि देवसत्थु अण्णहि वैणि कुलिसाउहासु महापुराण धत्ता - पुरि रयणसंचि मणिचेंचइइ थिरु आउंचियारिपसरु | राणउ खेमंकरु दीहकरु धीमहंतु उद्धरियधरु ||१५|| १६ थि पडिमाजोएं मुणिवरिंदु | संसारु भमिवि दुक्खाहिदछु । आढत्तु तेण मुणि मेरुधीरु । सई लज्जिउ गाउ रिउ गयणु ताम । अच्चु इंदहु हूयउ पडिंदु | मंगलवइदेसि विचित्तगेहि । देण इंदपदि वे वि । वज्जाउह सहसाउ कुमार | जणियउ णेहु व कुसुमाउद्देण । खेमंकरु पुत्तप उत्तस हिउ । पभणइ भुवि को सद्दंसणत्थु | णिम्म सम्मत्तु गुणावयासु | Jain Education International दूसरे दिन वह नन्दनपर्वत पर गया और वह मुनिवरेन्द्र प्रतिमायोग में स्थित हो गया । अश्वग्रीवका भाई सुकण्ठ दुःखसे आहत और संसारका परिभ्रमण कर भीम असुर हुआ । पूर्वभवका स्मरण कर मेरुपर्वत के समान धीर उन मुनिसे उसने शत्रुता शुरू कर दी । परन्तु जब वह मुनि उपसर्गसे जरा भी विचलित नहीं हुए तो वह शत्रु स्वयं लज्जित होकर आकाशमें कहीं भी चला गया । मुभी अनन्त आराधनाको साधकर अच्युत स्वर्ग में इन्द्रका प्रतीन्द्र हुआ । इसी द्वीप (जम्बूद्वीप) की पूर्वदिशा में गृहों से विचित्र मंगलावती देश है । [ ६१.१५.७ पत्ता - मणियोंसे शोभित रत्नसंचय नगर में शत्रुओंके प्रसारको रोकनेवाला बुद्धि में महान् धरतीका उद्धार करनेवाला क्षेमंकर नामका राजा था || १५|| १६ उसकी कनकचित्रा नामकी देवो थी । उससे इन्द्र और प्रतीन्द्र दोनों मानिनियोंके हृदयसारका अपहरण करनेवाले वज्रायुध और सहस्रायुध कुमार उत्पन्न हुए । सहस्रायुधको श्रीषेणसे इन्द्र पूजित कनकशान्त नामका पुत्र, वैसे ही हुआ जैसे कामदेवसे स्नेह उत्पन्न हुआ हो । इस प्रकार जब पुत्र और पौत्रों सहित क्षेमंकर राजा रह रहा था, तब स्वर्ग में देवसमूह कहता है कि पृथ्वीपर सम्यक दर्शन में कोन स्थित है ? दूसरे देवोंने कहा कि गुणोंसे युक्त वज्रायुधको निर्मल सम्यक्त्व प्राप्त है । यह सुनकर चित्रचूल नामका सुरवर जिसके शिखर आकाशको चूम रहे हैं ४. AP जयवरिंदु | ५. AP संसारि । ६. P दुक्खेहि दट्ठ । १६. १. A हि दणु अच्चुवइंदु ए वि । २. A reads this line and 3 सारु, तें परिणिय सिरिमइ णं कुमारु, तीए जणियउ सहसाउछु कुमारु । भण्णिउ । ५. A णिम्मल । For Private & Personal Use Only as: वज्जाउहु णार्मे तिजय३ AP को भुवि । ४. P www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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