SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९६ ५ १० महापुराण घत्ता - वणि सिद्धमहागिरि गंपि हलि णंदणमुणिवरपयजुयलु ॥ वंदेष्पिणु ब्रँड उववासतउ चिण्णउं दुश्ञ्चरु गलियमलु || १२ || १३ तर्हि आयउ कत्थइ तिउरणाहु | अम्हई नियंतु मारेण महिउ । कामाउरु पडियागड वलेवि । णं हंसें कुवलयमालियाउ । ता दिड ते कलत्तु एंतु । ईसा सावसु विष्फुरंतु । भीण वेणुवणि घल्लियाउ । णिविणार्से मुयाउ । घत्ता - कंदु ण मूलु ण फलु ण दलु अहिलसियउ उ किं पिवणि ।। जोईसरु सासयसिद्धियरु परमजिणेसरु धरिवि मणि ||१३|| वज्र्जंगउ णामें ससेहराहु कंता कुलिसमा लिणिइ सहिउ गणियपुरि णियपणइणि थवेवि बेण्णि वि जणी संचालियाउ आयासि जाम धावइ तुरंतु भत्तारचित्तगइ संभरंतु णिक्करुणें दइवुप्पेल्लियाउ परिहरियभीमवणयरभयाउ हणवमी आहंडलहु देवि मेंरइपवर कुबेरणारि मंदरयलि दिउ चरियतिक्खु [ ६१.१२.१२ १४ हूई माणुस एवि । दीसरजतहि दुक्खहारि: दिहिसेणु णाम पणवेवि भिक्खु । घत्ता - हे सखी, सुनो सिद्धिमहागिरि पर्वतपर जाकर नन्दन नामक मुनिवरके चरणकमलोंको प्रणाम कर कठोर तथा मलनाशक उपवासतपरूपी व्रत ग्रहण किया ||१२|| १३ वहाँ चन्द्रमाके समान कान्तिवाला त्रिपुरका स्वामी वज्रांगद नामका विद्याधर राजा कहीं से आया । हमें देखकर वह कामसे पीड़ित हो उठा। अपनी पत्नीको अपने घर छोड़नेके लिए वह गया और कामातुर वह शीघ्र वापस आ गया। उसने हम दोनोंको इस प्रकार उठा लिया मानो हंसने कुवलयमालाको उठा लिया हो । जैसे ही वह आकाश में दौड़ा कि उसने तुरन्त अपनी पत्नीको आते हुए देखा । अपने पतिकी गतिकी याद करते हुए और ईर्ष्या कषायके कारण तमतमाते हुए। दैवसे प्रेरित निष्करुण उस भयावहने हमें वेणुवनमें फेंक दिया। जिन्होंने भीषण वनचरों के भयको छोड़ दिया है, ऐसी हम दोनों वहां संन्यासपूर्वक मर गयीं । घत्ता - शाश्वत सिद्धि देनेवाले योगीश्वर परम जिनको अपने मनमें धारण कर हम लोगोंने उस वन में न कन्द, न मूल, न फल और न दल कुछ भी न चाहा ॥१३॥ १४ मैं नौवें स्वर्ग में देवी हुई । तू मनुष्य शरीर छोड़कर कुबेरकी रति नामकी देवी हुई । दुःखका हरण करनेवाली नन्दीश्वरकी यात्रामें मन्दराचलपर चरित्र में तीक्ष्ण धृतिसेन नामक मुनिको देखा। उन्हें प्रणाम कर हम लोगोंने पूछा कि सिद्धत्व ( मोक्ष ) कब प्राप्त होगा । मुनिने ७. AP वउ । १३. १. A सहसबाहु । २. P मालिए । ३ AP दइउ पेल्लियाउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy