SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुराण १० १५. थुणइ थुणंतु गहीरझुणि जय परममुणि । धम्मु ण णहयलि गिरिगुहिलि णउ धरणिय लि। धम्मु ण ण्हाणि ण पसुर्गसणि ण सुरावसणि। तुहुँ जि धम्मु जिणधम्ममउ कयजीवदउ। णरयपडंतहं दिण्णु करु तुहुं दुरियहरु। हरु तुहं संकर परमपेरु तुहुं तित्थयरु। बुद्ध सिद्ध तुहुं महु सरणु हयजरमरणु। जिहँ मणु धावइ णारियणि उत्तुंगथणि। जिह मणु धावइ भवणि धणि णियबंधुयणि । तिह जइ धावइ तुह पयह गयभवभयहं। तो संसारि ण संसरइ ण हवइ मरइ। जाइ जीउ तिहुवणसिरहु तहु सिवपुरहु । एंव थुणेवि पुरंदरिण वीणासरिण। समवसरणु णिम्मिउ विउलु तहिं जीवउलु । धम्मचक्कपहुंणा जिणिण संबोहियउं। २० इंदियविसयकसायवसु सुणिरोहियउं । घत्ता-तहु वज्जियछम्महु देवहु धम्महु तवभरधरदढयरभुय । चालीस मणोहर जाया गणहर बिहिं गणणाहहिं संजय ॥६॥ उत्पन्न हो गया। इन्द्र तुरन्त देवजनोंके साथ आया। स्तुति करते हुए गम्भीर ध्वनि वह कहता है-“हे परममुनि, तुम्हारी जय हो। धर्म न तो आकाशतल में है और न गिरिगुहामें। धर्म न स्नानमें है और न पशुओंके खाने में, और न मदिरा पीनेमें। जीवदया करनेवाले जिनधर्ममय आप धर्म हैं, नरकमें गिरते हुएके लिए तुमने अपना हाथ दिया है, तुम पापका हरण करनेवाले हो, तुम शिव-शंकर और परमश्रेष्ठ हो। तुम तीर्थंकर हो; तुम बुद्ध-सिद्ध मेरी शरण हो, जरा और मृत्युका नाश करनेवाले हो। जिस प्रकार मन ऊंचे स्तनोंवाली स्त्रियोंमें जाता है, जिस प्रकार मन दौड़ता है, भवन-धन और अपने बन्धुजनमें उसी प्रकार यदि वह भवभयसे रहित तुम्हारे चरणोंमें दौड़े तो वह संसारमें परिभ्रमण न करे, न पैदा हो और न मृत्युको प्राप्त हो, और जीव त्रिभुवनके सिरपर स्थित शिवपुरमें जाता है।" वीणाके स्वरमें इस प्रकार जिनकी स्तुति कर इन्द्रने विशाल समवसरणकी रचना की। उसमें धर्मचक्रके स्वामी जिनभगवान्ने सम्बोधित किया। इन्द्रियों और कषायोंकी अधीनताका उन्होंने विरोध किया। पत्ता-वहां उनके छह मदोंसे रहित, धर्मनाथ देवके तपका भार उठानेमें दृढ़तर भुजावाले, विभिन्न गणनाथोंसे युक्त चालीस सुन्दर गणधर हुए ॥६॥ ४. A पसुवहणे । ५. P has तुहं before हरु। ६. A मह सुयणु । ७. P omits this line. ८. A धावइ भवणि वणि; P धावइ णियभवणि धणि । ९. P तिहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy