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________________ ३४३ -५९.६.५ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पूसि सायण्हए रहिउ रइतण्हए। छट्ठउववासओ करिवि णिहिवासओ। णिवसहससंजुओ मुणिवरिंदो हुओ। खंतिकतापिओ तुरियणाणंकिओ। पुरि घरविचित्तए 'पाडलीउत्तए। भमिउ पिंडथिओ विणयणविओ थिओ। धण्णसेणालए ढोइयं कालए। भोयणं''फासुयं सव्वदोसच्चुयं । जायपंचब्भुयं दाणममरत्थुयं । सहइ तवतावणं __ करइ गुणभावणं । घत्ता-उवसंतइ मच्छरि गइ संवच्छरि खाइयभावहु आइउ ॥ फुल्लंत पियालउं तुंगतमाल तं सालवणु पराइउ ॥५॥ ~ ~ ~ ~ तहिं सत्तच्छयतरुहि तलि खगउलमहुलि। छट्टववासालंकियहु अविसंकियहुँ । पूसरिक्खि छणससिदिवसि हइ कम्नेरसि । अवरोहइ हूयउ सयलु केवलु विमलु। आयउ तुरियउं सतियसयणु दससयणयणु । शिविकामें बेठकर, कामको जीतकर घरसे निकल गये और शालवनमें पहुंचे। माघ शुक्ला त्रयोदशीके दिन सायंकाल पुष्य नक्षत्रमें रतिकी तृष्णासे रहित कर्मको सामर्थ्यका नाश कर, छठा उपवास कर एक हजार राजाओंके साथ दीक्षित हो गये। क्षान्तिरूपी कान्तिके प्रिय चार ज्ञानोंसे अंकित वह घरोंसे विचित्र पाटलिपुत्र नगर में आहारके लिए घूमे। शिष्टतासे नम्र वह राजा धन्यषेणके प्रासादमें पहुँचे। उस अवसरपर उन्हें प्रासुक तथा सब प्रकारके दोषोंसे. च्युत भोजन दिया गया। पांच प्रकारके आश्चर्य हुए। वह दान देवोंके द्वारा संस्तुत था। वह तपसे सन्तप्त उनको श्रद्धा करता, गुणोंकी भावना करता है। पत्ता-ईर्ष्याभाव समाप्त होने और एक साल बीतनेपर वह क्षायिक भावपर स्थित हो गये। जिसमें प्रियाल वृक्ष खिले हुए हैं और जिसमें ऊंचे-ऊंचे तमालवृक्ष हैं, ऐसे शालवनमें वह पहुँचे ॥५॥ वहाँ पक्षि-समूहसे मुखरित सप्तपर्ण वृक्षके नीचे, छठे उपवाससे शोभित, विशंकाओंसे रहित, पूष शुक्ल पूर्णिमाके दिन, कर्मकी सामर्थ्य नष्ट होनेपर अपराहमें विमल समस्त केवलज्ञान ८. A पिहियासवो। ९ A पुरधर । १०. AP पाडलीपुत्तए । ११. AP पासुयं । ६. १. AP°मुहलि । २. AP add after this: देवें सयरायरु मुणिलं, जगु जाणियउं ( A omits जगु जाणियउं ); खणि जाइय ( A जाइयउ ) देवागमणु, छण्णइ ( A सुण्णय ) गयणु; णाणाविहहिं पडाइयहि, अवराइयहि संथु उ देउ सुरासुरहिं, म उलियकरहि; K gives these lines but scores them off. ३. A तुरिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only -www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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