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________________ -५८. २१. ४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३३३ हरिवाहिणिखगवाहिणिसमेय णिग्गय बेणि वि हिमगरलतेय । रह तुरय दुरय णरेरवरउद्द मजायविवजिय णं समुह । चलचमरछत्तधयछण्णसेण्] उग्गयधूलीरयकविलवण्णु । दसदिसिहभरिय ण कहिं मि माइ महि वजघडिय विह डिवि ण जाइ । फणि तेण भरेण ण केम मरइ धुयफडकडप्पु थरहरइ सरइ । गरभोयणकइ रोमंचियाई सुपहूयई भूयई णच्चियाई। बिणि मि सेण्णइं समुहागयाइं आलग्गइं तासियदिग्गयाइं। जयगोमिणिमेइणिलंपडाई मुसुमूरियचूरियभडथडाई। पत्ता-दप्पिट्टइं बेणि मि दिट्ठइं सेण्णइं समरि भिडंतई । हलसूलई झसकरवालहिं पहरंताई पडतई ॥२०॥ २१ पवरासवारवेढियरहोहि रहसंकडि णिवडियविविहजोहि । जोहंघिदलियमंडलियमउडि मउडुच्छलंतमणि किरणविउडि । वियडियकवाडसंदोहणीडि णीडाहिरूढसुरवरसमीडि। मीडामहग्घजुज्झतवीरि वीरंगगलियकीलालणीरि । to 1 २० नारायणकी सेना और विद्याधरकी सेनाके साथ धवल और श्याम रंगवाले वे चले। रथतुरग-गज-नरवरोंसे भयंकर वह सेन्य ऐसा मालूम होता, मानो मर्यादासे रहित समुद्र हो। चंचल चमर छत्रध्वजसे आच्छन्न तथा उड़ती हुई धूलिरजसे कपिलवर्ण सेना दसों दिशाओं में फैलती हुई कहीं भी नहीं समा सकी। वज्रसे रचितके समान भूमि किसी प्रकार विघटित नहीं हो रही थी और इसलिए उसके भारसे किसी प्रकार मरता नहीं, कांपते हुए फनोंके समूहसे वह थर-थर कांपता हआ चलता है। मनुष्योंके भोजन के लिए बहतसे भत नाच उठे। दोनों ही सैन्य आमनेसामने आ गये और दिग्गजोंको पीड़ित करते हुए एक दूसरेसे भिड़ गये। दोनों विजयरूपी लक्ष्मी और धरतीके लम्पट थे, दोनों भट समूहको मसलने और चूरित करनेवाले थे। पत्ता-दोनों सैन्य दर्पसे भरे हुए युद्धमें लड़ते हुए, हल-मूसल-झष और करवालोंसे प्रहार करते और गिरते हुए दिखाई दे रहे थे ॥२०॥ २१ जिसमें बड़े-बड़े घुड़सवारोंसे रथोंके समूह घिरे हुए हैं, रथों ऐसा जमघट है, जिसमें विविध योद्धा गिर रहे हैं, जिसमें योद्धाओंके पैरोंसे माण्डलीक राजाओंके मुकुट नष्ट हो रहे हैं, जो मुकुटोंसे उछलती हई मणि किरणसे विनष्ट है, जिसमें नष्ट कपालोंके समहके घर हैं, और उनपर लक्ष्मी और बुद्धिसे युक्त देववर बैठे हुए हैं, जिसमें ऐश्वर्य और बुद्धिसे महान् वीर युद्ध कर रहे हैं और २०. १. AP णरवर रउद्द। २. AP मज्जायमुक्क णं चल समुद्द। ३. A °सेण्ण । ४. A धूलीरव । ५. A वण्ण । . ६. A°दिसवह । ७. AP कह व । ८. A वर्ण but corrects it to णर in second hand. ९. P समुहं गयाई । १०. A हलसूलिहिं । ११. AP वरकरवालहिं । २१.१. A जोहोहदलिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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