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________________ ३३२ महापुराण [ ५८. १९.१ तं णिसुणिवि भासइ सीरधारि भो दूय म कोक्कउ गोत्तमारि । अम्हारउ करु मग्गइ अयाणु किं ण मरइ रेणि सो हम्ममाणु । अम्हारउ करु सहुं ध]हरेण अम्हारउ करु सहुँ असिवरेण । अम्हारउ करु चक्केण फुरइ अम्हारउ करु तहु जीउ हरइ । अम्हारउ करु तहु कालवासु जिणु मेल्लिवि अम्हई भिञ्च कासु । तं सुणिवि महंतउ गउ तुरंतु विण्णवइ ससामिहि पय णमंतु। ण समिच्छइ संधि ण देइ दवु पर चवइ रामु केसउ सगवु । तं णिसुणिवि मणि उप्पण्ण खेरि हय रसमसंति संणाहभेरि । संणद्ध सुहड हणु हणु भणंति दट्ठोट्ठ रुट्ठ दमुय धुणंति । आरोहचरणचोइयमयंग धीरासँवारवाहियतुरंग। धाइय रहवर धयधुव्वमाण गयणयलि ण माइय खगविमाण | णिग्गउ आरूसिवि राउ जाम चरपुरिसहिं कहियउं हरिहि ताम । आयउ रिउ हय दुंदुहिणिणाउ थिउ रणभूमिहि वढियकसाउ । घत्ता-तं णिसुणिवि णियभुय धुणिवि केसउ जंपइ कुद्धउ । मरु मारमि पलउ समारमि रिउ बहुकालहुं लद्धउ ॥१९॥ यह सुनकर बलभद्र कहते हैं, "हे दूत, अपने कुलका नाश करनेवाली बात मत करो। हे अजान, जो हमसे कर मांगता वह मारे जानेपर युद्धमें क्यों नहीं मरता। हमारा 'कर' धनुर्धरके साथ, हमारा कर असिवरके साथ, हमारा हाथ चक्रके साथ स्फुरित होता है, हमारा कर उसके जीवका अपहरण करता है, हमारा हाथ उसके लिए कालपाश है, जिनवरको छोड़कर हम और किसके दास हो सकते हैं ?" यह सुनकर दूत तुरन्त गया और अपने स्वामीके चरणोंमें प्रणाम करता हआ निवेदन करता है-'हे देव, न तो वह सन्धिकी इच्छा करता है और न धन देता है, परन्तु राम केशव सगर्व केवल बकवास करता है।' यह सुनकर उसके मनमें वैर उत्पन्न हो गया। घोड़े हिनहिना उठे । भेरी बज उठी। सुभट तैयार होने लगे, मारो मारो कहने लगे, ओठ चबाते हुए अपने दृढ़ बाहु धुनने लगे। महावतके पैरोंसे हाथी प्रेरित हो उठे। धीर घुड़सवार घोड़ोंको हांकने लगे। ध्वजोंसे प्रकम्पित रथ दौड़ने लगे, आकाश-तलमें विद्याधरोंके विमान नहीं समा सके। जबतक राम ( बलभद्र महाबल ) निकलते हैं तबतक दूत पुरुषोंने नारायणसे कहा कि दुन्दुभिनिनादके साथ शत्रु आया है और बढ़े हुए क्रोधसे युद्धभूमिमें ठहरा है। घत्ता-यह सुनकर अपने बाहु ठोंकते हुए नारायण क्रुद्ध होकर सुप्रभसे कहता है, लो मारता हूँ, प्रलय मचाता हूँ। बहुत समयके बाद दुश्मन मिला है ।।१९।। १९. १. AP सो रणि । २. AP घणहरेण । ३. AP भुयबलि । ४. P धारासवार । ५. A रह रणिधयं । ६. AP साहिउं । ७. AP विहणिवि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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