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________________ ३२२ १० १५ वियसियतामरसायरो गरुयं गयरिउआसणं द्धिं णायणिलणं दिसि वह पत्तमऊहओ पसरियजाला णियकरो महापुराण मयरकरिल्लो सायरो | सुरस उह तमणासणं । काओयरकयकीणं । चिररयणसमूहओ । विमलो मारुयसयरो | घत्ता - फलु बालहि सिविणयमालहि पुच्छंतिहि धवलच्छिहि ॥ पइ भाइ तणुरुहु होसइ तिजगणाहु तुह कुच्छिहि ||५|| ६ राहु घरु सयम पेसणेण आगय सिरि हरि दिहि कंति बुद्धि माणिक किरणपसरियवियार कत्तियपडिवयदिणि चंदेसुक्कि गयरूवें गंगापंडुरेण अवइण्णु सुराहि गन्भवासि अहिसित्तई मायापियरयाई तिहुवणवइगुरुहि गुरुत्तणेण कंचीणिबद्ध किंकिणिसणेण । विरइय जयसे महि गब्भसुद्धि । छम्मास पडिय घरि कणयधार । रेवणक्खत्ति मोहमुकि । कयसुकयमही रुह फलभरेण । चभेदेवपुज्जाणिवासि । मंगलकलसहिं जिणगुणरयाई । समलंकियाई सुपहुत्तणेण । घत्ता - णञ्चतहिं मउ गायंतहिं करय तूरणिणायहिं ॥ घरपंग दिसि गणगणु छायउ अमरणिकायहि || ६ || १० जिनके मुखोंपर कमल समर्पित हैं ऐसे मंगल सहित दो कलश, विकसित कमलवाला सरोवर; मगररूपी हाथियोंसे भरा समुद्र । भारी सिंहासन, अन्धकारको नष्ट करनेवाला सुरविमान, स्निग्ध नागभवन कि जिसमें सांप क्रीड़ा कर रहे हैं, जिसकी किरणें दिशापयों में व्याप्त हो रही हैं ऐसा रंग-बिरंगा रत्नसमूह | जिसका ज्वाला समूह फैल रहा है ऐसा विमल अनल । धत्ता - स्वप्नमाला के फलको पूछनेवाली धवलाक्षिणी बालासे पति कहता है कि तुम्हारी कोख से त्रिजगस्वामी पुत्र होगा ॥५॥ Jain Education International ६ इन्द्र की आज्ञासे करधनी में बँधे हुए किंकिणियोंके शब्दोंके साथ श्री, ह्री, धृति, कान्ति और बुद्धि देवियाँ आयीं और उन्होंने जयश्यामाकी गर्भशुद्धि की । माणिक्य किरणोंसे जिसका विकार प्रसारित हो रहा है, ऐसी स्वर्णधारा छह माह तक घर में बरसी । कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा के दिन, मल समूहसे मुक्त रेवती नक्षत्र में गंगाके समान सफेद गजरूपमें, किये गये पुण्यरूपी वृक्षके फल के भारके कारण वह सुरराज, चार प्रकारके देवोंके पूजा-निवास उस गर्भवास में आया । जिनवरके गुणोंमें रक्त माता-पिताका मंगल कलशोंसे अभिषेक किया गया । तथा त्रिभुवनपतिके पिताको गुरुत्व और सुप्रभुत्व से अलंकृत किया गया । [ ५८. ५. ९– घत्ता - नाचते हुए, कोमल गाते हुए, हाथोंसे बजाये गये तुके निनादोंवाले अमरनिकायोंसे गृह प्रांगण, दिशाएँ और आकाशरूपी प्रांगण आच्छादित हो गया || ६ || २. P दिट्टु णाय । ३. P सहोयरो | ६. १. A जयसामहो । २. A चंदमुक्कि । ३ AP पुजापवेसे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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