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________________ - १८.५.८] कत्थइ थिय मरगय पोमराय कत्थइ हल्लइ चिंधेहिं चलेहिं गाइ भमरहिं रुणुरुणंति पुरि अक्खइ खुत्तर कामबाणु जा णिम्मिय पालिय णिहिघडेण तण्णयरीसह पियगेहिणीइ हिमहासकाससंकासवासि महाकवि पुष्पदन्त विरचित आहंडलधणुदंडछाय । णं च कामिणि करयलेहि । पारावयसद्दे णं कॅणंति । दरिसइ व कुसुमधूलीवियाणु । सामई वणिज्जइ कि जडेण । सोहग्गमहाजलवाहिणीइ । णिद्दायंति तलिमप्पएसि । घत्ता - सुहुं सुत्तइ पुण्णपवित्तइ स्यणिहि पच्छिमजामइ ॥ अवलोsय मणि पोमाइय सिविणावलि जयसामइ ||४|| करडगलियमयधारओ वसहो सण्हासोहिओ पविहिणहरुक्केरओ णवपंक सरसामिणी गुमुगुमंतमहुयरचलं पुण्णो लच्छिसहोयरो कीला उड्डीया वयणसमप्पिय सयदला ५ करि गिरिभित्तिवियारओ । खुरलंगूलपसाहिओ । विसेमो सीह किसोरओ । गवरहविया गोमिणी । दामजुयं सुहपरिमलं । गणे उइड दिवायरो | सरभमिरा पाढीणया । कलसा दोणि समंगला | Jain Education International २. A चेंधें । ३. P कुणंति । ४. P णउ । ५. A सुहसुत्तइ । ५. १. AP विसमउ । ४१ ३२१ हरे और नीले मणियोंसे काली है, मानो धरतीपर मेघमाला आ पड़ी हो। कहीं मरकत और पद्मरागमणि थे, मानो इन्द्रधनुष के दण्डकी कान्ति हो । कहींपर चंचल ध्वजोंसे आन्दोलित थी, मानो कामिनी अपने चंचल हाथोंसे नाच रही हो, मानो गुनगुनाते हुए भ्रमरोंके बहाने गा रही हो, मानो कबूतरोंके शब्दोंसे शब्द कर रही हो, मानो वह नगरी लगे हुए कामबाणको बता रही हो, मानो कुसुम परागके विज्ञानको दिखा रही हो। जिसका निर्माण निधिकलशोंकी रक्षा करनेवाले कुबेरने किया हो, उसका वर्णन मुझ जैसे जड़ कविके द्वारा कैसे किया जा सकता है ? सौभाग्य- महाजल की नदी, उस नगरीके राजा की प्रिय गृहिणी, हिम हास कांसके समान पलंगपर निद्रामें ऊँघती हुई i घत्ता - पुण्य से पवित्र उसने सुखसे सोती हुई रात्रिके अन्तिम प्रहर में स्वप्नावली देखी और मनमें प्रसन्न हुई ||४| १० ५ गण्डस्थल से मद झरता हुआ और गिरिभित्तिका विदारण करनेवाला गज़, गल कम्बल से शोभित और खुर तथा पूँछसे प्रसाधित वृषभ, वज्र के समान नखोंके समूहवाला विषम सिंह किशोर, नवकमलोंके सरोवरको स्वामिनी और गजवरोंके द्वारा अभिषिक्त लक्ष्मी, जो गुनगुन करते भ्रमरोंसे चंचल है ऐसा शुभपरिमलवाला मालायुग्म, पूर्ण लक्ष्मीसहोदर ( चन्द्रमा), आकाश में उगा हुआ सूर्य; क्रीड़ामें उड़ता हुआ और जलमें घूमनेवाला मत्स्ययुगल । For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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