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________________ २९९ -५७.१०.१४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित धत्ता-तं णिउणमईहिं समप्पियउं धाइहि हियवउं हरिसियउं ॥ अहिणाणु महामंतिहिं तणउ भंडायारिहि दरिसियजं ॥९॥ पप्फुल्लियसुवत्तसयवत्तइ चिंधु पदंसिवि वुत्तउं धुत्तइ । अच्डइ गुरु राउलि अवलोयहि भद्दमित्तमाणिक्कइं ढोयहि । तो कोसाहिवेण सामुग्गउ अप्पिउ धाइहि वत्थुसमुग्गउ । गय सा तं लेपिणे खणि तेत्तहि अच्छइ सणिवंणिवाणी जेत्तहि । जूयपवंचु पहुहि वज्जरियउ वसुविसेसु कुडिले अवहरियउ । ता राएं पायावलिजडियई अण्णइं रयणई तहिं तोतडियई। पडिहारें आहूयउ वणिवरु लइ णियमाणिक्कई पसरहि करु । भणिउं णरिंदें वणिउ णिरिक्खइ णियधणु किं ण को वि ओलक्खइ । लइयउ तेत्थु तेणे णियमणिगणु जिह मणिगणु तिह णरणाहहु मणु । दिण्णउं पुरमहल्लसेट्टित्तणु पाइ को ण सुइत्ते कित्तणु । मंतिणिरिकु ढुकु अवमाणहु कंसथालि खावाविउ छाणहु । सीसि तीस खरटक्कर घायहिं ताडिउ मल्लहिं कुंचियकायहिं । घत्ता-कसपहरपरंपरसुढियतणु वरवेयणवढियजरउ ।। मुउ रायहु उप्परि कुवियमणु हुउ वसुवासइ विसहरउ ॥१०॥ घत्ता-वे चीजें उसने अपनी निपुणमति धायको सौंप दी। वह मन में हर्षित हुई। महामन्त्रीकी इन पहचानोंको मैं भण्डारीको दिखाऊंगी ॥९॥ खिले हुए मुखकमलवाली उस धूर्ताने पहचान बताकर कहा कि "गुरु राजकुलमें हैं, (यह) देखो और भद्रमित्रके माणिक्य दे दो।" तब कोषके अध्यक्षने रत्नोंसे परिपूर्ण पिटारा उसे दे दिया। वह उसे लेकर एक क्षणमें वहां गयी जहां उसके राजाकी रानी थी। उसने जुएका प्रपंच राजाको बताया और कुटिलतासे अपहृत किया गया धन भी । तब राजाने किरणावलिसे विजड़ित और दूसरे रत्न उसमें मिला दिये। प्रतिहारने वणिक्वर को बुलाया। "लो अपने रत्न ले लो।" राजाने कहा। वणिक् उन्हें देखने लगा। अपने धनको कौन नहीं पहचानता। उसने वहां अपने मणिगण ले लिये। जिस प्रकार उसने अपना मणिगण ले लिया, उसी प्रकार उसने राजाका मन भी जीत लिया। उसने उसे नगरके महाश्रेष्ठीका पद दिया। पवित्रतासे संसारमे कौन नहीं कीर्ति T? चोर मन्त्री अपमानको प्राप्त हुआ। काँसेकी थालीमें उसे गोबर खिलाया गया। संकुचित शरीर मल्लोंके तीव्र टक्करके आघातोंसे तीस बार सिरपर उसे ताड़ित किया गया। पत्ता-कोड़ोंके आघातकी परम्परासे शन्यशरीर तथा अत्यधिक वेदनासे जिसे ज्वर बढ़ रहा है ऐसा वह सत्यघोष मन्त्री राजाके प्रति कुपित मन होकर भाण्डागारमें सांप हुआ ॥१०॥ पा। ६. A महिवइहिययउं । ७. P भडायारिहे। १०.१. P तो । २. A साचग्गउ; P सामग्गउ । ३. P लेप्पिण तंखणि । ४. P सणिवइराणी। ५. P adds वि after तेण । ६. A पावइ को ण सइत्तें; Pपावइ कि ण सुइत्तें। ७. A सीस तीस खरटक्कर; P सीसि तीस खरढक्कर। ८. A धणवेयण: P वणवेयण । ९. A विसहरु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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