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________________ २६८ महापुराण [ ५४. १५. १५१५ एते तारएणं वियारिया वइरिबाण बाणेहिं वारिया । णाई णाय णाएहिं कयफणा लोहवंत पिसुण व्व णिग्गुणा । घत्ता-पडिकण्हें कण्हहु पट्ठविउ अलयहउ उद्दामउ ॥ अइदीहरु कालउ पंचफडु भीयरु मारणकामउ ॥१५॥ दुवई-सो गरुडेण हणेवि खणि घेल्लिउ पडिबलजलणवारिणा ॥ मायातिमिरपडलु तो पेसिउ तहु हुंकरिवि वइरिणा॥ तं पि विवक्खलक्खखयकालें हरिणा णासिउं रवियरजालें। इय दिव्वाउहपंतिउ छिण्णउ बहुयउ लक्खकोडिसयगण्णउ । पुणु बहुरूविणिविजपहावें जुज्झिउ पडिहरि कुडिलसहावें। सा वि पणट्ठ जणद्दणपुणे सिरिमइतणएं अंजणवणे। लेवि चक्कु करि भामिवि वुत्तउं देहि हत्थि मा मरहि णिरुत्तउं । ता पडिलविय उवायापुत्ते किं ससहरु जिप्पइ णक्खत्ते । जइ ण धरमि रहंगु सई हत्थे तो पइसमि हुयवहु परमत्थे । १० मरु को मरइ संढ तुह घाएं मुकु चक्कु तो तारयराएं । तीर छोड़े। आते हुए उन तीरोंको तारकने विदारित कर दिया। शत्रुके बाणोंका उसने बाणोंसे निवारण कर दिया, जैसे नागोंके द्वारा फन उठाये हुए नाग हों। वे तीर लोहवन्त ( लोहेसे बने, लोभयुक्त ) और दुष्टकी तरह, निर्गुण ( डोरी रहित-गुणरहित थे)। __घत्ता-प्रतिकृष्ण तारकने द्विपृष्ठके ऊपर उद्दाम अत्यन्त दीर्घ काला पांच फनका भयंकर मारनेकी इच्छावाला जलसर्प फेंका ॥१५॥ १६ उसे द्विपृष्ठने शत्रुबलकी ज्वालाके लिए जलके समान गरुड़ बाणसे एक क्षणमें नष्ट कर दिया। तब दुश्मनने हुंकार करते हुए उसके ऊपर मायावी ( कृत्रिम ) अन्धकारका पटल फेंका। उसे भी विपक्षके लक्ष्य के लिए क्षयकालके समान सूर्यकिरण जालसे नारायणने नष्ट कर दिया। इस प्रकार सैकड़ों लाख करोड़से गुणित बहुत-सी दिव्य आयुधपंक्तियां छिन्न हो गयीं। फिर प्रतिनारायण बहुरूपिणी विद्याके प्रभावसे और अपने कुटिल स्वभावसे लड़ता रहा। वह विद्या भी जनार्दनके पुण्य और श्यामवर्ण श्रीमतीके पुत्र द्वारा नष्ट कर दी गयी। तब उसने अपना चक्र हाथमें लेकर और घुमाकर कहा कि "हाथी दे दो, निश्चय ही तुम मत मरो।" इसपर द्विपृष्ठने प्रत्युत्तर दिया, "क्या नक्षत्रके द्वारा चन्द्रमा जीता जा सकता है। यदि मैं तुम्हारे चक्रको अपने हाथमें ग्रहण नहीं करता, तो मैं वास्तवमें अग्निमें प्रवेश करूंगा। मूर्ख नपुंसक, तुम्हारे आघातसे कौन मरता है।" तब तारक राजाने चक्र छोड़ा। ९. A एंति । १०. P लोहवंता। १६.१. A सो धल्लिउ । २. A तहि पेसिउ । ३. A हववहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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