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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
घत्ता - अरिरुहिरतोय तन्हायतणु पक्खिहिं पक्खझडप्पिय उं ॥ उम्मुच्छिउ को वि महासुहडु लग्गड वइरिहिं विप्पियउ || १४ ||
-५४. १५. १४ ]
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दुवई - पेरिफुडकर डगलियमयधारालालसभसलसद्दए । को विकरिददतय सयणइ सुत्तउ मरणणिद्दए । लद्धवीर भंडण महोमिसे घारचंचुभक्खियणरामिसे । उच्छलंत वीसढव सारसे कालदूयरक्खसमहानसे । पहरभग्गगयभीरु माणुसे हम्ममाणभडभमियतामसे | पुव्ववइरसंबंध दारुणे वणगलंतवणरुहवणारुणे । खयररायसंघायमारणे तारएण हरि कोकिओ रणे । कंतदंतगिरिभित्तिदारुणो जेर्म बप्प दिण्णो ण वारणो । बंधु कडुयं सुविपियं जेम दूयपुरओ पयंपियं । अज्जु बाल किं णेव जुज्झसे संत मंतिमंतं ण बुज्झसे । धरणिणाह जयलच्छिधारिणा भणि महिवई दाणवारिणा । दी पंचभूयहं ण लज्जसे मम पुरो तुमं काईं गज्जसे । रायवायव्वेण वग्गसे परहणा किं मुक्ख मग्गसे । इय भणेवि मुक्का तिणा सरा पुंखलग्गहुंकारवरसरा ।
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धत्ता - शत्रुके रुधिररूपी जलसे आर्द्रशरीर, पक्षियोंके द्वारा पंखोंसे आक्रान्त तथा शत्रुओंसे बुरी तरह लड़ता हुआ कोई सुभट मूच्छित हो गया || १४ ||
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स्पष्ट रूपसे गण्डस्थलसे झरती हुई मदधाराकी लालसासे जिसमें भ्रमरशब्द हो रहा है, ऐसे नींद में कोई सुभट हाथीदाँतों को शय्यापर सो गया। जिसमें वीरोंके युद्धका बहाना ढूँढ़ लिया गया है, जिसमें गोधोंकी चोंचोंसे मनुष्योंका मांस खाया जा रहा है, जिसमें वीसढ ? वसा और रस उछल रहा है, जो कालदूतरूपी महाराक्षसका रसोईघर है, जिसमें प्रहारसे भग्न होकर भीरु मनुष्य चले गये हैं, आक्रमण करते हुए योद्धा रौद्रभावसे घूम रहें हैं, जो पूर्वं वैरके सम्बन्धसे अत्यन्त दारुण है; जिसमें घावोंसे रक्तरूपी जल बह रहा है, जिसमें विद्याधर राजाओंके समूहको हिंसा की जा रही है, ऐसे युद्ध में तारकने हरि (द्विपृष्ठ) को ललकारा, "हे सुभट, अपने कान्तदांतोंसे पहाड़ की दीवार के भेदन में दारुण गज तुमने जिस प्रकार नहीं दिया, तथा जिस प्रकार तुमने भाईके कानोंको कटु लगनेवाले अप्रिय कथन दूतके सामने किया; हे मूर्ख, उसी प्रकार तुम क्या नहीं युद्ध करते, शान्तिके मन्त्रिमन्त्रको क्यों नहीं समझते ? " तब पृथ्वीनाथकी विजयलक्ष्मीको धारण करनेवाले दानवोंके शत्रु ( द्विपृष्ठ) ने राजासे कहा, “हे दोन, पांच महाभूतोंसे शर्म नहीं आती, तुम मेरे सामने क्यों गरजते हो । राज्यरूपी बातके गर्वसे तुम घमण्ड करते हो । रे मूर्ख, तुम पराया धन क्यों मांगते हो ?" यह कहकर उसने पुंखके साथ जिसमें हुंकारका स्वरवर लगा हुआ है ऐसे
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१५. १. AP पडिकरि; K पडिकरि but eorrects it to परि । २. AP महारसे । ३. AP रसावसे । ४. AP माणसे । ५. A दारणो । ६. A जेण । ७. AP तेम । ८. AP पहरणाई; K पहरणाई but corrects it to परहणाई ।
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