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________________ -५४. ५.७] महाकवि पुष्पदन्त विरचित दोडं वि साहणाई आलग्गइं चालियचक्कई तोलियखग्गई। खलियरहंगई मलियतुरंगई दलियधुरग्गइं दूसियमग्गई। मोडियदंडई लुयधयसंडई खंडियमुंडई णञ्चियरुंडई । जूरियपत्तई चूरियछत्तई दारियगत्तई-णिग्गयरत्तई। लूरियताणई हयजंपाणई उड़ियप्राणई कयसिरदाणई। हुंकारंतई हकारंतई उरगयकोंतइं चललुलियंतई। मग्गणभिण्णइं तिलु तिलु छिण्णइं सेयवसिण्णइं रत्तकिलिण्णई । विरसु चवंतई वम्मु छिवंतइं संक मुयंतई संकु घिवंतई। हस्थिणिसुंभई फाडियकुंभई जोहेणिरुभई जयजसुलंभई। घत्ता-ता सरिवि सुसेणे सरिउबले सरहिं णिरंतरु भिण्णउं । जमदूयहं भूयह भुक्खियहं णाइ दिसाबलि दिण्णउं ॥४|| दुवई-ताव सुसेणमुक्कबाणावलिविहडियणिविडगयघडं ।। हरिसंचलणदलेणणिहरखुरफोडियधवलधयवडं ।। छंडियकिवाणु गलियाहिमाणु। लंबंतकेसु जणजणियहासु। पत्तावमाणु दिसि धावमाणु । धयछत्तछण्णु पेच्छवि सँसेण्णु । पडिभडकयंतु धाइउ तुरंतु । अनुरक्त मतवाले हाथियोंके समान भिड़ गये । दोनोंको सेनाएँ भिड़ गयीं, चक्र चलाती हुई और खड्ग तोलती हुई। चक्र स्खलित हो गये, अश्व दलित होने लगे। धुराग्रभाग चूर-चूर होने लगे। मार्ग दूषित होने लगे । दण्ड मुड़ने लगे। ध्वजसमूह कटने लगे। मुण्ड कटने लगे। धड़ नाचने लगे। वाहन पीड़ित हो उठे। छत्र चूर-चूर हो गये। शरीर विदीर्ण हो गये, रक्त बह निकला । अश्व और पाण त्राण (कवच ) रहित हो गये। प्राण उड़ने लगे। सिरोंका दान किया जाने लगा। हुंकारते हुए, हंकारते हुए । भाले उरमें घुसने लगे । चंचल आंतें लुढ़कने लगीं। तीरोंसे छिन्न-भिन्न होकर तिल-तिल कटने लगा। पसीनेसे भीग गये, रक्तसे लिप्त हो गये । विरस बोलते हुए, कवच छेदते हुए, शंका छोड़ते हुए, अस्त्र ग्रहण करते हुए, हाथियोंको नष्ट करते हुए, कुम्भस्थलोंको फाड़ते हुए, योद्धाओंको रोकते हुए, जय और यशको पाते हुए। पत्ता-तब सुषेणने तीरोंसे शत्रुसेनाको लगातार छिन्न-भिन्न कर दिया, मानो उसने भूखे । यमदूतों और भूतोंको दिशाबलि दी हो ॥ ४ ॥ तबतक सुषेणके द्वारा छोड़ी गयी बाणावलीसे सघन गजघटा विघटित हो गई। अश्वोंके संचालन और दलनके कारण कठोर खुरोंसे धवल ध्वजपट फाड़ दिये गये। जिसने तलवार छोड़ दी है, जिसका अभिमान खण्डित हो चुका है, केश बिखर चुके हैं, जिसने लोगोंमें हास्य उत्पन्न २. AP जोहणिसुंभई । ३. AP जयजसलंभई; P adds aftr this: कित्तिवियंभई। ४. AP'बलु ५. १. AP वलण । २. AP°फालियं । ३. A ससेणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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