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________________ २५२ महापुराण [ ५३. १२.१ १२ पंचतीस चउसहसइ दुइसय सिक्खुयहं पंचसहस जलणिहिसय सावहिभिक्खुयहं । छहसहास सव्वण्हुहुं दह वेउन्वियहं लेसासमई सहासई मणपज्जयवियहं । सायरसहसई दोसय वाइहिं णयधरहं एंव होंति बाहत्तरिसहसई जइवरहं । एक्कु लक्खु छहसहसई संजमधारिणिहिं लक्ख चयारि समासिय घरवयचारिणिहिं । दोण्णि लक्ख गुणवंतहं संतहं सावयहं संखेजउ गणु घोसिउ काणणसावयहं । जिणवरवयणणिहालणणिहयभवावयह संख णत्थि तहिं आयहं देवहं देवियह । चउपण्णास जि लक्खई वरिसविहीणाई वरिसह विहरिवि महियलि भवसमरीणाई। हरिकयकणयकुसेसयउयरिविइण्णपउ संबोहेप्पिणु भगवई चंपाणयरु गउ । पत्ता-णिज्जियणियरिउ वरधम्मचक्कि मुणिराणउ । पलियंकासणु अंतिमझाणम्मि णिलीणउ ॥१२॥ १३ भह वयहु ससय भिसहहि सेयच उद्दसिहि तिण्णि वि अंगइं गलियई तासु महारिसिहि । अवरोहइ चउणवइहिं रिसिहिं समेउ जिणु जायउ सिद्ध भडारउ ववगयजम्मरिणु। सकिं अग्गिकुमारहिं जयजयकारियउं अंगु अणंगीहूयहु तहु सकारियउ। आहंडलधणुमंडलमंडियघण घणइ कहइ पुरंदरु देवहं जंतु णहंगणइ । १२ उनतालीस हजार दो सौ शिक्षक मुनि थे। पांच हजार चार सौ अवधिज्ञानी मुनिवर थे। छह हजार केवलज्ञानी और दस हजार विक्रियाऋद्धिके धारी मुनि थे। छह हजार मनःपर्ययज्ञानी, चार हजार दो सौ वादीश्वर मुनि थे। इस प्रकार ( उनके साथ ) बहत्तर हजार मुनिवर थे। एक लाख छह हजार संयम धारण करनेवाली आर्यिकाएं थीं। गृहस्थ धर्मका पालन करनेवाली श्राविकाएं चार लाख थीं। गुणवान् श्रावक दो लाख थे। व्रतसहित तिथंच संख्यात कहे गये हैं। जिनवरके मुखको देखने मात्रसे जिन्होंने संसारकी आपत्तियोंका नाश किया है ऐसे वहां आनेवाले देवी-देवताओंकी संख्या नहीं थी। एक वर्ष कम चौवन लाख संसारश्रमसे हीन वर्षों तक धरतीतलपर विहार कर, इन्द्रके द्वारा रचित स्वर्णकमलके ऊपर पैर देकर चलनेवाले वह भव्योंका सम्बोधन करनेके लिए चम्पानगर गये। घत्ता-जिन्होंने अपने शत्रुको जीत लिया है, ऐसे श्रेष्ठ धर्मचक्रवर्ती मुनिराज पर्यकासनमें स्थित अन्तिम ध्यानमें लीन हो गये ।।१२।। . १३ भाद्र शुक्ला चतुर्दशीके दिन उन महाऋषिके तीनों ही शरीर गल गये। अपराल में चौरानबे मुनियोंके साथ, जन्मरूपी ऋणसे रहित आदरणीय वह जिन सिद्ध हो गये । इन्द्र और अग्निकुमार देवोंने उन्हें जयजयकार किया, अनंगीभूत हुए उनके शरीरका दाह-संस्कार कर दिया गया। इन्द्रधनुष मण्डलसे मेघवाले आकाश के प्रांगणमें जाता हुआ इन्द्र देवोंसे कहता है कि प्रभु १२. १. A गुण । २. A भवावहहं । ३. P देवयहं । ४. AP"झाणे । १३. १. A सविसाहहे कसण; p सुविसाहहे कसणं; K records ap as in AP | २. P महासिहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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