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________________ २३४ महापुराण [५२. २२.७ कण्णामुहालोयसुहदिण्णराएण भग्गो सि कि मित्त वरइत्तवाएण । रत्तो सि कि मूढ गयणयरबालाहि ओसरसु मा पडसु खग्गग्गिजालाहि । णवकंदकालिंदिभसलउलकालेण कोवारुणच्छेण भंगुरियभालेण । जम्मंतराबद्धबइराणुयंधेण पडिउत्तु पडिकण्हु चलगरुलचिंधेण । परदविणपरधरणिपरघरिणिकंखाइ णडिओ सि पाविट्ठ किं चोरसिक्खाइ । एवं पजंपंत कंपवियैमहिवट्ठ करिदंतपरिहँट्ठभुयदंडसुपवट्ठ । दप्पिट्ट णिरु रुह दट्ठोट्ठ भडजेट्ठ ते बे वि अभिट्ठ वईकुंठहयकंठ । ते बे वि मणिमउडकुंडलसुसोहिल्ल ते बे वि कोदंडमंडलविलासिल्ल । ते बे वि णं सीह लंबवियलंगूल ते बे वि णं लग्ग रंजंत सदूल । ते बे वि विसविसम ते बे वितडितरल ते बे वि मरुचवल ते बे वि कुलधवल । घत्ता-बेणि वि दाणणिहि सिरितोसविहि मयपरवस उज्झियभय ।। बेण्णि वि दीहकर गंभीरसर रणि लग्गे'णं दिग्गय ।।२२।। २३ दुवई-बेणि वि अच्छरच्छिविच्छोहणियच्छियबद्धमच्छरा ॥ बेणि विणं जलंतपलयाणल बेणि वि णं सणिच्छरा॥ यमुना पुत्र (अश्वग्रीव ) ने कहा कि हे मित्र, जिसमें कन्याके मुखालोकसे शुभ राग दिया गया है, ऐसी अभिनव वरकी बातसे क्या तुम भग्न हो गये हो? हे मूर्ख, विद्याधर बालामें तुम क्यों अनुरक्त हुए, तुम हट जाओ, तुम खड्गरूपी आगकी ज्वालामें मत पड़ो। (इसपर) श्रावण में और भ्रमरकुलके समान कृष्ण, तथा क्रोधसे अरुण आंखोंवाले, टेढ़े भालवाले, तथा जन्मान्तरके बँधे हुए बैरके अनुबन्धसे युक्त और चंचल गरुडध्वजवाले नारायण त्रिपृष्ठने प्रतिकृष्ण (अश्वग्रीव)से कहा-"दूसरेके धन-धरती और स्त्रीको आकांक्षा है जिसमें, ऐसी चोरशिक्षा द्वारा हे पापिष्ठ, तू क्यों प्रतारित है ?" यह कहते हुए और महीपृष्ठको कपाते हुए हाथोके दांतोंसे संघर्षित भुजदण्डोंसे प्रबल दर्पसे भरे हुए अत्यन्त क्रुद्ध, ओठ चबाते हुए योद्धाओं में बड़े वे दोनों प्रतिनारायण अश्वग्रीवसे भिड़ गये। वे दोनों ही मणिमय मुकुट और कुण्डलोंसे शोभित थे, वे दोनों ही धनुषमण्डलसे विलास करनेवाले थे। वे दोनों ही मानो लम्बो पंछवाले सिंह थे। वे दोनों ही इस प्रकार युद्ध में लग गये मानो गरजते हुए सिंह हों, वे दोनों विषसे विषम और बिजलीको तरह तरल थे, वे दोनों ही कुलधवल थे। ' घत्ता-वे दोनों ही दानको निधि, श्री और सन्तोषके विधाता, मदके वशीभूत और भयसे रहित थे। वे दोनों ही लम्बे हाथवाले गम्भीरस्वर रणमें इस प्रकार भिड़ गये मानो दिग्गज हों ॥२२॥ २३ वे दोनों ही देवांगनाओंके नेत्रोंकी चपलताको देखनेके लिए ईर्ष्या धारण करनेवाले थे। वे २. A कण्हो महा । ३. P गयणयलबालाहि । ४. AP °णुबंधेण। ५. A पडिलविउ । ६. कंपश्य महिपट्ट । ७. A पविहट्ठ। ८. P वइकुंत। ९. A रूजंतसद्दल । १०. A दोहरकर । ११. A लग्ग णं । २३. १. P°विच्छोहा णियच्छिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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